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मंगलवार, 24 अगस्त 2021

शाश्वत सच 

मैं चौराहे पर खड़ा हुआ 
क्योंकि मुश्किल में पड़ा हुआ 
मैं इधर जाऊं या उधर जाऊं,
 यह प्रश्न सामने खड़ा हुआ 
 एक तरफ जवानी के जलवे
  जिनमें मैं डूबा था अब तक 
  एक तरफ बुढ़ापा बुला रहा
   देता है बार-बार दस्तक
   मैं किधर जाऊं, क्या निर्णय लूं
   मन में उलझन, शंशोपज है
  आएगा बुढ़ापा निश्चित है 
  क्योंकि ये ही शाश्वत सच है 
  कोई चिर युवा नहीं रहता 
  यह सत्य हृदय को खलता है 
  दिन भर जो सूरज रहे प्रखर,
  वह भी संध्या को ढलता है 
  रुक पाता नहीं क्षरण तन का,
   मन किंतु बावरा ना माने 
   इसलिए लगा हूं बार-बार 
   मैं अपने मन को समझाने
    तू छोड़ मोह माया सारी 
    अब आया समय विरक्ती का 
    जी भर यौवन में की मस्ती,
     अब वक्त प्रभु की भक्ति का 
     एक वो ही पार लगाएंगे,
     तेरा बेड़ा भवसागर में 
     तू भूल के सांसारिक बंधन 
     अब बांधले बंधन ईश्वर से

   मदन मोहन बाहेती घोटू

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