पृष्ठ

मंगलवार, 29 जून 2021

आम आदमी

 मैं आदमी आम हूं  अनमना हू
 बजाते हैं सब ही मैं वो झुनझुना हूं 
 आश्वासनो के लिए ही बना हूं 
 बहुत ही परेशां, दुखों से सना हूं
 
मैं वक्ता नहीं हूं पर बकता नहीं हूं
 कमजोरियों को ,मैं ढकता नहीं हूं 
 बिना पेंदी जैसा लुढ़कता नहीं हूं 
 बुरों के करीब में भटकता नहीं हूं
 
 सही जो लगे मुझको, लिखता वही हूं
 सच्चाई के रास्ते से डिगता नहीं  हूं
 बिकाऊ नहीं हूं ,मैं बिकता नहीं हूं 
 जो भीतर हूं बाहर से दिखता वही हूं 
 
धनी हूं मगर मैं धुरंधर नहीं हूं 
हमेशा जो जीते ,सिकंदर नहीं हूं 
हिलोरे है मन में, समंदर नहीं हूं
कला मेरे अंदर ,कलंदर नहीं हूं

प्रणेता हूं लेकिन मैं नेता नहीं हूं 
खुशी बांटता, कुछ भी लेता नहीं हूं 
हारा नहीं पर विजेता नहीं हूं 
चमचों का बिल्कुल चहेता नहीं हूं

 जब आता इलेक्शन सभी खोजते हैं
  मिलता जो मौका, सभी नोचते हैं 
  मेरे हित की बातें नहीं सोचते हैं 
  मेरे नाम पर सब उठाते मजे हैं 
  
ये शोषण दिनोदिन ,मुझे खल रहा है 
बहुत ही दुखी ,मेरा दिल जल रहा है 
जिसे मिलता मौका ,मुझे छल रहा है 
नहीं अब चलेगा, जो यह चल रहा है 

मेरे दिल में लावा, उबल अब रहा है 
ये ज्वालामुखी बस ,धधक अब रहा है
बहुत सह लिया, अब न जाता सहा है
नई क्रांति को यह ,लपक कब रहा है 

मदन मोहन बाहेती घोटू

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

कृपया अपने बहुमूल्य टिप्पणी के माध्यम से उत्साहवर्धन एवं मार्गदर्शन करें ।
"काव्य का संसार" की ओर से अग्रिम धन्यवाद ।