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रविवार, 6 जून 2021

हम जी रहे हैं 

हवा खा रहे , पानी और पी रहे हैं 
बन पड़ता जैसे भी, हम जी रहे हैं 
बहुत सह लिया अब सहा नहीं जाता, 
जख्म दिल के गहरे, वही सी रहे हैं 

 भला कोई कहता,बुरा कोई कहता,
 सारी उमर सुनते सबकी रहे हैं 
 सावन में सूखे न  भादौ हरे हैं,
 रहे झेलते, सरदी, गरमी,रहे हैं 

  कभी चैन से ना दिया हमको जीने
  निगाहों के कांटे ,कई की रहे हैं 
नहीं भाव देते हमें आज वह भी,
 कभी भावनाओं में जिनकी रहे है

 अलग बात ये कि हुऐ ना वो पूरे,
  मगर देखते सपने हम भी रहे हैं 
  हवा खा रहे पानी और पी रहे हैं 
  बन पड़ता जैसे भी हम जी रहे हैं

मदन मोहन बाहेती घोटू

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