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शुक्रवार, 16 अक्टूबर 2020

दादी की यादें

मुझे याद है बचपन में ,
जब शैतानियां करने पर ,
झेलनी पड़ती थी पिताजी की मार
तब एक दादी ही होती थी जो ,
मुझे आकर के बचाती थी ,
और लुटाती थी मुझ पर ढेर सा प्यार
मैं सिसकियाँ भरता हुआ ,रोता था
और दादी की गोद में सर रख कर सोता था  
वह मुझ पर ढेर सारा प्यार लुटाती थी
अपनी बूढी उँगलियों से ,मेरा सर सहलाती थी
और पता नहीं ,मुझे कब नींद आ जाती थी
आज भी  कई बार
जब मैं होता हूँ बेकरार ,
परेशानियां मुझे तंग करती है
तो मेरी दादी की अदृश्य उँगलियाँ ,
मुझे थपथपाते हुए ,
मेरा सर सहलाया करती है
मैं उनके बूढ़े हाथों का प्रेम भरा स्पर्श ,
और उनकी उँगलियों को अपना सर
सहलाता हुआ पाता हूँ
और उनकी मधुर यादों में खो जाता हूँ

मदन मोहन बाहेती ;घोटू ;

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