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शुक्रवार, 16 अक्टूबर 2020

वही ढाक के तीन पात

मैंने अपने रहन सहन में  काफी कुछ बदलाव कर दिया ,
लेकिन फिर भी मेरा जीवन ,वही ढाक के तीन पात है
कल की बात याद ना रहती ,नाम भूल जाता लोगों के ,
बातें बचपन वाली , सारी ,लेकिन अब भी मुझे याद है

भरे हुए अनुभव की गठरी ,अब मेरा मष्तिष्क हो गया ,
इसको खोल ,किसे मैं बांटू ,लेने वाला कोई नहीं है
प्रेशर कुकर और ओवन के, युग में मिटटी की हंडिया में ,
पकी दाल के स्वाद और गुण ,चाहने वाला कोई नहीं है
सब अपने अपने चक्कर में ,इतना ज्यादा व्यस्त हो गए ,
भले काम की हो कितने ही ,कोई सुनता नहीं बात है
मैंने अपने रहन सहन में ,काफी कुछ बदलाव कर दिया ,
लेकिन फिर भी मेरा जीवन ,वही ढाक  के तीन पात है

तेज बहुत था तेजपान सा ,पर पुलाव की हांडी में पक ,
अपनी खुशबू सभी लुटा दी ,और रह गया फीका पत्ता
खाते वक़्त कोई ना खाता ,फेंक दिया जाता बेचारा ,
हाल बुढापे में सबका ही ,ऐसा  हो जाता  अलबत्ता
घटा नज़र का तेज ,घट गया ,खानपान और पाचन शक्ति ,
उमर बढ़ रही ,जीवन घटता ,देखो कैसी करामात है
मैंने अपने रहन सहन में ,काफी कुछ बदलाव कर दिया ,
लेकिन फिर भी मेरा जीवन ,वही ढाक के तीन पात है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

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