पृष्ठ

गुरुवार, 1 अक्तूबर 2020

बढ़ती हुई उमर के संग संग

बढ़ती हुई उमर के संग संग ,दिल के दर्द बदल जाते है
धुंधली नज़रों संग नजरिया और सन्दर्भ बदल जाते है

बाहर सख्त नारियल ,अंदर ,कोमल गरी नज़र आती है
बुढ़िया होती सी बीबी भी ,मुझको परी नज़र आती है
उसकी खोटी खोटी बातें मुझको खरी नज़र आती है
हरेक विषय में ,वो अनुभव की ,गठरी भरी नज़र आती है
कहती औरत नहीं बदलती ,लेकिन मर्द बदल जाते है
बढ़ती हुई उमर के संग संग ,दिल के दर्द बदल जाते है

उसके प्रति ,मेरे मन में अब ,उमड़े प्यार और भी ज्यादा
मैं हूँ रखने लगा आजकल ,उसका ख्याल ,और भी ज्यादा
एक दूजे संग ,वक़्त हमारा ,कटता  यार ,और भी  ज्यादा
उसे देख ,झंकृत होते है ,दिल के तार ,और भी ज्यादा
जहाँ प्यार की उष्मा होती ,मौसम  सर्द  बदल जाते है
बढ़ती हुई उमर के संग संग ,दिल के दर्द बदल जाते है

मदन मोहन बाहेती'घोटू '

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

कृपया अपने बहुमूल्य टिप्पणी के माध्यम से उत्साहवर्धन एवं मार्गदर्शन करें ।
"काव्य का संसार" की ओर से अग्रिम धन्यवाद ।