पृष्ठ

शुक्रवार, 29 मई 2020

जीवन का सफर
 
है  तीन चरण का ये जीवन  ,बचपन यौवन ,वृद्धावस्था
सुख दुःख पीड़ायें ,हंसी ख़ुशी ,कांटों, फूलों का  गुलदस्ता
 रहता है प्यार भरा  बचपन ,कटता मस्ती से विहंस विहंस
यौवन आता  फुर्र हो जाता ,और कटे बुढ़ापा टसक टसक

माँ के आँचल की छाया में ,कटता बचपन ,किलकारी भर
घर में माँ बाप बहन भाई ,सब लाढ़ लड़ाते है  जी भर
ना चिंता कोई ना ही फ़िकर ,मासूम शकल भोली भोली
एक हंसना और एक रोना बस ,आती है केवल दो बोली
हम जाते सबकी गोदी में ,खुश हो मुस्काते हुलस हुलस
यौवन आता  फुर्र हो जाता ,और कटे बुढ़ापा टसक टसक

फिर आये जवानी मतवाली, मन में नूतन उत्साह लिए
सुंदरता देख मचलता मन ,उसको पाने की चाह लिए
मिलता कोई जीवनसाथी ,बस जाती दिल की बस्ती है
दिन पंख लगा उड़ जाते है ,छाती जीवन में मस्ती है
जब भार गृहस्थी का पड़ता ,मोहमाया में जाते फंस फंस
यौवन आता फुर्र हो जाता और कटे बुढ़ापा टसक टसक

फिर आती उम्र बुढ़ापे की ,लगती है एक पहेली सी
चुभती है कभी शूल जैसी ,लगती है कभी सहेली सी
जो बीज बोये थे, फल देंगे ,करते रहते ये आशा हम
पर तिरस्कार जब मिलता है,बन जाते एक तमाशा हम
अपनों से प्यार नहीं मिलता ,और हम जाते है तरस तरस
यौवन आता फुर्र हो जाता ,और कटे बुढ़ापा टसक टसक

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

कृपया अपने बहुमूल्य टिप्पणी के माध्यम से उत्साहवर्धन एवं मार्गदर्शन करें ।
"काव्य का संसार" की ओर से अग्रिम धन्यवाद ।