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शुक्रवार, 24 अप्रैल 2020

कोरोना

न पड़ता गले  जो ,कदाचित कोरोना
नहीं इतनी मुश्किल ,हमें पड़ती ढोना

चालीस दिनों की ,हुई घर में बंदी
बाहर न निकलो ,लगी है पाबंदी
अपने मिलने वालो से कहदो मनाकर
आपस में दूरी ,रखें सब   बनाकर
हरेक घंटे में हाथ साबुन से धोना
नहीं इतनी मुश्किल ,हमें पड़ती ढोना

हुआ खुल के साँसे भी लेना मनाही
मुंह पर सभी ने है ,पट्टी लगाईं
करो काम खुद अब ,महरी न नौकर
पड़ा सबके के पीछे ,है ये हाथ धोकर
बोअर हो गए ,रात  दिन सोना सोना
नहीं  इतनी मुश्किल ,हमें पड़ती ढोना

नहीं चाट मिलती ,समोसे ,मिठाई
कहीं दाल रोटी ही  ,सदा जाये खाई
है वीरान सारे ,गली और मोहल्ले
रहो बैठे दिनभर तुम घर में निठल्ले
मोटापे से फूला ,तन का कोना कोना
नहीं इतनी मुश्किल ,हमें पड़ती ढोना

चले रेल ना बस ,है बंद आना जाना
नहीं चल रहा है कोई कारखाना
थे करते दिहाड़ी ,जो मजदूर सारे
भगे गाँव घर को ,मुसीबत के मारे
सुधरेगी कब तक ,ये हालत कहो ना
नहीं इतनी मुश्किल ,हमें पड़ती ढोना

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

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