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शुक्रवार, 15 नवंबर 2019

नहीं बूढ़े हुए है हम

आदतें बचपने वाली ,अब तलक  है कई कायम
जाने फिर क्यों लोग कहते है कि बूढ़े हो गए हम

दाँत कुछ टूटे और  हिलते ,     होते थे तब ,वैसे अब भी
पकड़ कर,ऊँगली किसी की ,चलते  थे तब चलते अब भी ,
तब भी हम जिद्दी बहुत थे , जिद नहीं अब भी हुई कम
देख सुन्दर चीज कोई ,अब भी है जाते मचल हम
न जाने क्या सोच करके ,दिया करते ,अब भी मुस्का
ठंडी कुल्फी और चुस्की का हमें है अब भी चस्का
ध्यान हम पर कोई ना दे ,मानते अब भी बुरा हम
आदते बचपने वाली,अब तलक है कई कायम
जाने फिर क्यों लोग ये कहते है बूढ़े हो गए हम

बचपने में बहुत अच्छी ,हमको लगती थी मिठाई
आज भी अच्छी लगे, है मना ,फिर भी जाय खाई
सिनेमे का शौक बचपन की तरह अब भी बना है
तब भी गाते ,फ़िल्मी गाने ,अब भी लेते गुनगुना है
बचपने में माँ का पल्लू ,पकड़ते थे प्यार पाने
अब पकड़  बीबी का पहलू ,लगे है टाइम बिताने
तब पिता से और अब ,बच्चों से डर कर ,रह रहे हम
आदतें बचपने वाली, अब तलक है कई कायम
जाने फिर क्यों लोग ये कहते है बूढ़े हो गए हम

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

1 टिप्पणी:

  1. आदरणीय,आपकी रचना को

    भीतर से वही हूँ कुछ समझ नहीं आता
    ये आइना क्यों शक्ल , बदली दिखाता है
    सरल, मासूम सी रचना 👌👌🙏🙏🙏🙏

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