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बुधवार, 23 अक्टूबर 2019

रूप चौदस मनाऊंगा

चाँद सा चेहरा चमकता ,केश ये काले घनेरे
रूप चौदस मनाउंगा  ,रूपसी मैं साथ तेरे
 
कपोलों के कागजों पर ,कलम से अपने अधर की ,
चुंबनों की स्याही  से मैं ,प्यार की पाती लिखूंगा
प्रीत का गहरा समंदर ,है तुम्हारा ह्रदय  सजनी ,
डूब कर उस समंदर में ,मैं तुम्हारी थाह लूँगा
तमसमय काली निशा को,दीप्त,ज्योतिर्मय करूंगा ,
जला कर के प्रेम दीपक ,दूर कर दूंगा अँधेरे
रूप चौदस मनाऊंगा ,रूपसी मैं साथ तेरे

पुष्प सा तनबदन सुरभित ,गंध यौवन की बसी है ,
भ्र्मर  सा रसपान कर ,मकरंद का आनंद लूँगा
अंग अंग अनंग रस में ,डूब कर होगा प्रफुल्लित ,
कसमसाते इस बदन को ,बांह में ऐसा कसूँगा
पौर पौर शरीर का थक , सुखानुभूति  करेगा ,
संगेमरमर सा बदन ,इठलायेगा जब पास मेरे
रूप चौदस मनाऊंगा ,रूपसी मैं साथ तेरे

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

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