पृष्ठ

रविवार, 7 अक्टूबर 2018

बुलंद हौंसले 

आते नहीं है हमको ज्यादा दंद फंद है 
दिखते जलेबी ,दिल से मगर कलाकंद है 
आती न चमचागिरी ना ही मख्खन मारना ,
मुहफट्ट है ,कुछ लोगों को हम नापसंद है 
हमने किसी के सामने ना हाथ पसारे ,
अल्लाह का करम है कि हम हुनरमंद है 
ना टोकते ,ना रोकते रास्ता हम किसीका ,
ना बनते दाल भात में हम मूसरचंद  है 
है नेक इरादे तो सफलता भी मिलेगी ,
करके रहेंगे साफ़ ,ये फैली जो गंद  है 
कुछ करने की जो ठान ले ,करके ही रहेंगे ,
जज्बा है मन में ,हौंसले अपने बुलंद है 

घोटू 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

कृपया अपने बहुमूल्य टिप्पणी के माध्यम से उत्साहवर्धन एवं मार्गदर्शन करें ।
"काव्य का संसार" की ओर से अग्रिम धन्यवाद ।