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गुरुवार, 15 फ़रवरी 2018

मन का ये भ्रमजाल हट गया 

तन ऊर्जा सहमी सहमी थी 
पर मन में गहमा गहमी थी 
मैं बूढ़ा ना ,अभी जवाँ  हूँ ,
मन में यही गलत फहमी थी  
देख जाल झुर्री का तन पर ,
मन का यह भ्रमजाल हट गया 
तन की अगन पड़  गयी ठंडी ,
अरमानो का जोश घट गया
देख कली को, मंडराता था 
झट से मचल मचल जाता था 
जब भी दिखती हुस्न ,जवानी ,
दीवानापन सा छाता था 
जाल पड़ा,आँखें धुंधलाई 
अब उनका दीदार घट गया
 तन की अगन पड़ गयी ठंडी ,
अरमानो का जोश घट गया 
गयी जवानी ,गया जमाना 
शुरू हुआ अब पतझड़ आना 
लेकिन मन का बूढा बंदर,
भूला नहीं गुलाट  लगाना 
श्वान पुच्छ सी रही आशिक़ी ,
इसका टेढ़ापन न  हट गया 
तन की अगन पड़ गयी ठंडी ,
अरमानो का जोश घट गया 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

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