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शनिवार, 17 फ़रवरी 2018

बुढ़ापा बोल रहा है 

अब तन कर चलने में भी तन डोल रहा है 
                             बुढ़ापा बोल रहा है 
क्षुधा क्षरित है,पचनशक्ति भी क्षीण हो गयी 
मुख मंडल की आभा ,कान्ति विहीन हो गयी 
सर के  केश सफ़ेद,हुई   खल्वाट  खोपड़ी  
राजमहल सा बदन रह गया  मात्र  झोपडी  
शिथिल  हो गए अंग ,ठीक से काम न करते 
धुंधलाए से नयन ,नहीं,  चहु ओर  विचरते 
कसी ,गठीली काया ,झुर्रीवान  हो गयी 
रखती थी जो शान,वही पहचान खो गयी 
सुमुखियों मुख ,बाबा सुन खूं  खौल रहा है 
                             बुढ़ापा बोल रहा है 
बिदा हुए मुख से एकएक कर दांत कटीले 
त्याग  रही संग, याददाश्त भी  ,धीरे धीरे 
छोड़ साथ ,बच्चे खुश ,अपने परिवारों में 
अब हम ,चीज ,पैर  छूने की,त्योंहारों में 
साथ उमर के मिले नए कुछ संगी,साथी 
कई व्याधियां मिली,उम्र भर,साथ निभाती 
रोमांटिक यह हृदय ,धड़कता बन कर रोगी 
मिष्ठानो का प्रेमी ,अब बन गया  वियोगी 
है निषिद्ध पकवान ,देख मन डोल  रहा है 
                             बुढ़ापा बोल रहा है 
काम नहीं कुछ,दिन भर छायी रहे उदासी 
ब्लड का प्रेशर बढ़ा और आती है खांसी 
बदल करवटें रात कटे और नींद न आये 
बीते दिन की यादें रह रह कर तड़फाये 
दिन भर टीवी देख न्यूज़ पेपर को चाटें 
बहुत अधिक चुभते जीवन के अब सन्नाटे 
वृद्ध कहो हमको वरिष्ठ या बोलो  बूढा 
गयी बहारें मगर  ,हुआ ये जीवन कूड़ा 
बीत गया वो मौसम ,जो अनमोल रहा है 
                           बुढ़ापा बोल रहा है 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

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