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रविवार, 27 अगस्त 2017

पूजन और रिटर्न गिफ्ट 

क्या आपने कभी गौर किया है ,
कि हमारी सोच है कितनी संकुचित 
भगवान को करते है बस पत्र पुष्प अर्पित
गणेशजी को दूर्वा 
शंकरजी को बेलपत्र और अकउवा 
और अन्य देवताओं को पान 
फिर पानी के चंद छींटों से कराते है स्नान 
और फिर ' वस्त्रम समर्पयामि 'कह कर ,
कलावे के धागे  का एक टुकड़ा तोड़ कर ,
उन्हें चढ़ा देते है 
और फिर 'पुंगी फल समर्पयामि 'कह कर ,
एक छोटी सी सुपारी ,
जो खाने योग्य नहीं होती ,
उनकी ओर बढ़ा देते है 
ये वही पूजा की सुपारी होती है ,
जो हर बार,हर पूजा में ,
फिर फिर चढ़ाई जाती है 
क्योकि भगवान इसे खा नहीं सकते ,
और पंडतांइन भी इसे नहीं खाती है
एक जटाधारी सूखा नारियल ,
जो किसी के काम नहीं आता है 
हर पूजा में भगवन को चढ़ाया जाता है 
'गजानन भूत गणादि सेवकं ,
कपित्थ जम्बूफल चारु भक्षणम '
मंत्र वाले गणेशजी को ,
उनका प्रिय कपित्थ या जम्बूफल ,
कभी नहीं चढ़ाया जाता है 
बल्कि उन्हें मोदक चढ़ाते है ,
जो उनका' ब्लड शुगर 'बढ़ाता है 
उन्हें एक किलो का डिब्बा दिखाते है 
एकाध लड्डू चढ़ा कर  ,
बाकि सब घर ले आते है 
सच ,हम है कितने सूरमा 
खुद तो खाते है बाटी और चूरमा 
और प्रभु को खिलाते घासफूस है 
देखलो,हम कितने कंजूस है 
इस तरह की सस्ती चीजों को ,
प्रतीक बना कर चढाने के बाद 
हम प्रभु से करते है फ़रियाद 
'हमें अच्छी बुद्धि दो 
रिद्धि और सिद्धि दो '
ये जानते हुए भी कि ,
रिद्धि सिद्धि उनकी वाईफ है 
एक पति से उसकी पत्नियां माँगना ,
कितना नाजाईश है 
ये आप,हम सब अच्छी तरह जानते है 
फिर भी रिटर्न गिफ्ट में ,
रिद्धि सिद्धि ही मांगते है 
और फिर पांच या दस दिन के बाद ,
जब थक जाते है रोज रोज कर अर्चन 
कर देते है उनका जल में विसर्जन 
जैसे विदेशों में बसे बच्चे ,
अपने बूढ़े  माता पिता को,
वर्ष में एक बार ,
आठ दस दिन के लिए बुलाते है ,
करते है सत्कार 
और फिर उन्हें बिदा कर देते है ,
बाँध कर उनका बिस्तर बोरिया 
यह कह कर कि 'बाप्पा मोरिया 
अगले बरस तू फिर से आ' 

मदन मोहन बाहेती'घोटू' 
          क्या करें 

आदतें  बिगड़ी  पड़ी है ,क्या करें 
आशिक़ी सर पर चढ़ी है ,क्या करें 
बीबी हम पर रखती हरदम चौकसी ,
मुसीबत बन कर  खड़ी है,क्या करें 
कहीं नेता ,कहीं बाबा  लूटते,
अस्मतें ,सूली चढ़ी है  ,क्या करें 
काटने को दौड़ती है हर नज़र,
हरतरफ मुश्किल बड़ी है,क्या करें 
जिधर देखो उधर घोटाले मिले ,
हर तरफ ही गड़बड़ी है ,क्या करें 
किसी को भी ,किसी की चिंता नहीं,
सभी को अपनी पड़ी है ,क्या करें 
चैन से ,पल भर कोई रहता नहीं,
सबको रहती हड़बड़ी है ,क्या करें 
'घोटू'करना चाहते है बहुत कुछ ,
जिंदगी पर, दो घड़ी है,क्या करें 

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
   पूरी-पंचतत्व से भरी  

गेंहू,'पृथ्वी तत्व 'से युक्त होता है ,
क्योंकि पृथ्वी से उपजता है 
और इसी गेंहू से आटा बनता है 
यह आटा 'जल तत्व' मिला कर ,
जब गूंथा जाता है 
और  खुले वातावरण में ,
जब पूरी सा बेला जाता है 
तो उसमे 'वायु तत्व' मिल जाता है 
ये पूरियां जब 'अग्नि तत्व'से गर्म ,
घी में तली जाती है 
तो फूल कर 
'आकाश तत्व'से भर जाती है 
इसलिए फूली फूली पूरियों का,
ये जो बनता  भोजन है 
इसमें सभी पंचतत्वों का समायोजन है 

घोटू 

शनिवार, 26 अगस्त 2017

    हृदयाभिनन्दन 

तुम राजा राजेश ह्रदय के ,
और शालीन ,शालिनी जैसे 
पंख लगाये है  ईश्वर  ने ,
तुमको हंस ,हंसिनी  जैसे 
खग से उड़ो और इस जग में ,
जगमग जगमग हरदम चमको 
पाकर पुत्र पायलट तुमसा ,
बहुत  गर्व होता है हमको 
जीवन के इस विस्तृत नभ में ,
रहे तुम्हारी शान हमेशा 
वायुयान से पंख तुम्हारे 
भरते रहे  उड़ान हमेशा 
बन कर रहो विशाल ह्रदय तुम,
सदा 'हनी' सा हो मीठापन 
सदा सुखी ,समृद्ध रहो तुम ,
हृदय तुम्हारा है अभिनंदन 

तुम्हे ढेर सा प्यार करनेवाले 
       मम्मी और पापा 

मंगलवार, 22 अगस्त 2017

हे देवी,पत्नी-परमेश्वरी 

हे  देवी,  पत्नी-परमेश्वरी 
हृदयवासिनी,तू हृदयेश्वरी 

शांतिदायिनी,सुखप्रदायिनी 
अंकशायिनी ,मन लुभावनी 
नवरस भोजन ,स्वाददायिनी 
सब घरभर का बोझ वाहिनी 
मैं तुम्हारा ,दास  अकिंचन ,
सुख दुःख की तुम ,मीत सहचरी 
हे  देवी  पत्नी -परमेश्वरी 

विधि ने तुमको स्वयं बनाया 
खिले कमल सी,कोमलकाया 
महक पुष्प सी,चहक खगों की 
चंचलता और चाल  मृगों  की 
रक्तिम अधर,नयन कजरारे,
कंचन तन की छवि सुनहरी 
हे  देवी - पत्नी परमेश्वरी 

तेरी पूजा ,तेरा  अर्चन 
कर पुलकित होता मेरा मन 
अन्नपूर्णा ,लक्ष्मी है तू 
मैं श्रद्धानत ,तुझको पूजूं 
खुशियां बरसाती जीवन में,
बन कर प्यार भरी तू बदरी 
हे  देवी  पत्नी -परमेश्वरी 

कनकछड़ी सी सुंदर मूरत 
प्रेम घटों से छलके  अमृत 
मैं तुम्हारा ,दास अकिंचन 
निशदिन करू,तुम्हारा वंदन 
रूप गर्विता ,प्रेम अर्पिता 
प्यारी सुन्दर ,छवि नित निखरी 
हे  देवी  पत्नी -परमेश्वरी 
मन को भाता ,मुख मुस्काता 
देख हृदय प्रमुदित हो जाता 
तेरे एक इशारे भर पर 
मैं चकरी सा,खाता चक्कर 
तेरे आगे ,उठ ना पाती ,
नजर हमारी ,डरी डरी 
हे  देवी  पत्नी-परमेश्वरी 

आस लगाए बैठा ये मन 
दे दो मधुर ,अधर का चुंबन 
बाँध मुझे बाहु बंधन में 
उद्वेलन भरदो तन मन में 
पा ये प्रेम प्रसाद आस्था ,
दिन दिन बढे और भी गहरी 
हे  देवी  पत्नी-परमेश्वरी 

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

गुरुवार, 17 अगस्त 2017

भारत देश महान चाहिए
 
पतन गर्त में बहुत गिर चुके,अब प्रगति,उत्थान चाहिए 
हमको अपने सपनो वाला ,प्यारा हिन्दुस्थान   चाहिए  

ऋषि मुनियों की इस धरती पर,बहुत विदेशी सत्ता झेली
शीतल मलयज नहीं रही अब ,और  हुई  गंगा भी मैली 
अब ना सुजलां,ना सुफलां है ,शस्यश्यामला ना अब धरती 
पंच गव्य का अमृत देती ,गाय सड़क पर ,आज विचरती 
भूल   धरम की  सब  मर्यादा ,संस्कार भी सब  बिसराये 
 कहाँ गए वो हवन यज्ञ सब,कहाँ गयी वो वेद ऋचाये 
लुप्त होरहा धर्म कर्म अब ,उसमे  नूतन  प्राण चाहिए 
हमको अपने सपनो वाला ,प्यारा हिन्दुस्थान चाहिए  

परमोधर्म  अहिंसा माना ,शांति प्रिय इंसान बने हम 
ऐसा अतिथि धर्म निभाया,बरसों तलक गुलाम बने हम 
पंचशील की बातें करके ,भुला दिया ब्रह्मास्त्र बनाना 
आसपास सब कलुष हृदय है,भोलेपन में ये ना जाना 
मुंह में राम,बगल में छुरी ,रखनेवाले  हमे ठग गए 
सोने की चिड़िया का सोना,चुरा लिया सब और भग गए 
श्वेत कबूतर बहुत उड़ाए ,अब तलवार ,कृपाण चाहिए 
हमको अपने सपनो वाला प्यारा हिन्दुस्थान चाहिए 

अगर पुराना वैभव पाना है ,तो हमें बदलना होगा 
जिस रस्ते पर दुनिया चलती उनसेआगे चलना होगा 
सत्तालोलुप कुछ लोगों से ,अच्छी तरह निपटना होगा 
सत्य अहिंसा बहुत हो गयी,साम दाम से लड़ना होगा 
हमकोअब चाणक्य नीति से,हनन दुश्मनो का करना है 
वक़्त आगया आज वतन के,खातिर जीना और मरना है 
हर बंदे के मन में जिन्दा ,जज्बा और  तूफ़ान चाहिए 
हमको अपने सपनो वाला ,प्यारा हिन्दुस्थान  चाहिए 

कभी स्वर्ग से आयी थी जो,कलकल करती गंगा निर्मल 
हमें चाहिए फिर से वो ही ,अमृत तुल्य,स्वच्छ गंगाजल 
भारत की सब माता बहने ,बने  विदुषी ,लिखकर पढ़कर  
उनको साथ निभाना होगा ,साथ पुरुष के ,आगे बढ़ कर 
आपस का मतभेद भुला कर ,भातृभाव फैलाना  होगा 
आपस में बन कर सहयोगी ,सबको  आगे आना होगा 
हमे गर्व से फिर जीना है ,और पुरानी  शान चाहिए 
हमको अपने सपनो वाला ,प्यारा हिन्दुस्थान चाहिए 

सभी हमवतन ,रहे साथ मिल ,तोड़े मजहब की दीवारे 
छुपे शेर की खालों में जो ,कई भेड़िये ,उन्हें  संहारे 
जौहर में ना जले  नारियां ,रण में जा दिखलाये जौहर 
पृथ्वीराज ,प्रताप सरीखे ,वीर यहाँ पैदा हो घर घर 
कर्मक्षेत्र या रणभूमि में ,उतरें पहन बसंती बाना 
कुछ करके दिखलाना होगा,अगर पुराना वैभव पाना 
झाँसी की रानी के तेवर और आत्म सन्मान चाहिए 
हमको अपने सपनो वाला वो ही हिन्दुस्थान चाहिए  

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'







बुधवार, 16 अगस्त 2017

आओ,कुछ इंसानियत दिखाए 

खुदा ने जब कायनात को बनाया 
तो उसे कुदरत के रंगो  से सजाया  
नदियाएँ बहने लगी 
सबको मीठा जल देने लगी 
फिर वृक्ष बनाये 
उनमे मीठे मीठे फल आये  
हवाएं बहने लगी 
सबको ठंडक देने लगी 
पहाड़ो पर हरियाली छाई 
ग्रीष्म,शीत ,बारिश और बसंत ऋतू आई 
सूरज ने प्रकाश और ऊष्मा फैलाई 
चाँद ने रात में शीतलता बरसाई 
फूल महकने लगे 
पंछी चहकने लगे 
सबने ,जितना जो दे सकता था ,
खुले हाथों दिया 
और बदले में कुछ नहीं लिया 
और फिर जब भगवान ने इंसान को बनाया 
तो उसने प्रकृति की इन सारी नियामतों का ,
भरपूर फायदा उठाया 
और बदले में क्या दिया 
पेड़ों को कटवा दिया
पहाड़ों का किया दोहन 
 बिगाड़ दिया पर्यावरण 
स्वार्थ में होकर अँधा  
नदियों का पानी किया गंदा 
एक दुसरे से लड़ने लगा  
जमीन के लिए झगड़ने लगा  
धरम के नाम पर आपस में फूट डाल  ली 
कितनी ही बुराइयां पाल ली 
अब तो इस बैरभाव की इंतहा होने लगी है 
धरती भी परेशां होने लगी है 
अब समय आगया है कि हम कुछ सोचे,विचारे 
अपने आप को सँवारे 
अपने फायदे के लिए ,
दूसरों को ना करे बर्बाद 
इसलिए आप सब से है फ़रियाद 
हम इंसान है,थोड़ी इंसानियत फैलाएं 
भाईचारे से रहे ,एक दुसरे के काम आये 
तो आओ ,ऐसा कुछ करें ,
जिससे हमारी छवि सुधरे 
चलो हम किसी रोते  को हंसाये  
किसी भूखे को पेट भर खिलाये  
किसी बिछुड़े को मिलाते है 
किसी गिरते को उठाते है  
किसी प्यासे की प्यास मिटाये 
किसी दुखी का दर्द हटाए 
किसी असहाय को सहारा दे 
किसी डूबते को किनारा दे 
किसी बुजुर्ग के दुःख काटे 
किसी बीमार को दवा बांटे 
किसी को अन्धकार से उजाले में लाये 
किसी भटके को सही राह दिखलाये 
किसी अबला की इज्जत ,लूटने न  दे 
किसी बच्चे का ख्वाब टूटने न दे  
किसी अनपढ़ को चार लफ्ज सिखला दे 
किसी अंधे को रास्ता पार करा दे 
किसी के रास्ते से बुहार दे कांटे 
जितना भी हो सके,सबमे प्यार बांटे 
करे कोशिश कि कोई लाचार न हो 
कम से कम कुछ  ऐसा करे,
जिससे इंसानियत शर्मशार न हो
हमें आजादी मिले बीत गए है सत्तर साल 
फिरभी बिगड़ा हुआ है हमारा हाल 
आपसी मतभेद बढ़ता जा रहा है 
देश का माहौल बिगड़ता जा रहा है 
अरे सत्तर साल की उमर में तो,
झगड़ालू मियां बीबी भी शांति से रहते है 
टकराव छोड़ कर प्रेम की धरा में बहते है 
इसलिए हम मिलजुल कर रहे साथ साथ 
अब गोली से नहीं,गले लगाने से बनेगी बात  
तो आओ ,मिलजुल कर भाईचारे से रहें,
आपस में न लड़े 
ऐसा कुछ न करे जिसका खामियाजा ,
हमारी आनेवाली पीढ़ी को  भुगतना पड़े  
हर तरफ चैन और अमन रहे छाया 
जिससे ऊपरवाले को भी अफ़सोस न हो ,
कि उसने इंसान को क्यों बनाया?  
इसलिए हम साथ साथ आये 
और थोड़ी इंसानियत फैलाये 

मदन मोहन बाहेती'घोटू' 
      कभी कभार  

 हाय हाय कर हाथ हिलाती 
 बाय बाय कर हाथ हिलाती 
कभी कभार हाथ से मेरे ,
अपने कोमल हाथ  मिला दो 
चढ़ी सदा रहती हो सर पर 
चैन  न  लेने देती पल  भर
कभी कभार ढील देकर तुम,
मेरे दिल का कमल खिला दो 
मुझ से रहती सदा झगड़ती 
सारा दोष मुझी  पर मढ़ती 
रहती हरदम तनी तनी सी ,
कभी कभार झुको तो थोड़ा 
कभी कभार नैन मिल जाए 
कभी कभार  चैन मिल जाए 
हरदम भगती ही रहती हो,
कभी कभार रुको तो थोड़ा 
 रोज रोज ही घर का खाना 
वो ही रोटी,दाल  पकाना 
कभी कभार किसी होटल में ,
स्वाद बदलने का मौक़ा दो 
रोज शाम तक थकी थकी सी 
रहती हो तुम पकी पकी  सी 
कभी कभार मिलो सजधज कर ,
मुझको भी थोड़ा चौंका दो 
काम धाम में सदा  फंसी तुम 
रहती घर में घुसी घुसी तुम 
कभी कभार निकल कर घर से,
साथ घूमने जाएँ हम तुम 
घर का बंधन ,जिम्मेदारी 
यूं ही उमर बिता दी सारी 
कभी कभार बाहों में भर कर ,
मुझको बंधन में बांधो तुम 
जिन होठों पर सदा शिकायत 
और बक बक करने की आदत 
कभी कभार उन्ही होठों से ,
दे दो मुझे प्यार से चुंबन 
जिन आँखों का एक इशारा 
मुझे नचाता दिन भर सारा 
कभी कभार उन्ही आँखों से,
कर दो थोड़ा प्यार प्रदर्शन 
लगे एक रस जब ये जीवन 
तब आवश्यक है परिवर्तन 
कभी कभार 'ब्रेक' जब मिलता,
तो कितना अच्छा लगता है 
थोड़ी थोड़ी रोक टोक हो 
थोड़ी थोड़ी नोक झोंक हो 
कभी कभार अगर झगड़ा हो,
प्यार तभी सच्चा लगता है 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
 

मंगलवार, 15 अगस्त 2017

क्या इसीलिये हम है स्वतंत्र 

आओ हाथों में पत्थर ले ,हम एक दूसरे पर  फेंकें 
 मन की भड़ास कोदूर करें  ,हम औरों को गाली देके 
एक दूजे की टांग खींच हम ,कोई को भी ना बढ़ने दे  
कोई ना दोस्त किसीका हो,सबको आपस में लड़ने दे 
अपनी निर्माण शक्तियों को हम चलो बनादे  विध्वंशक 
अपने प्रगतिशील विचारों को ,ले जाएँ हम बर्बादी तक 
आजादी की अभिव्यक्ति का हर व्यक्ति लाभ पूरा ले ले 
एक दूजे पर कालिख पोते ,और कीचड़ से होली खेलें 
हम एक दूजे की निंदा कर ,फैलाये गंदगी यत्र तत्र 
क्या ये मतलब आजादी का ,क्या इसीलिये हम है स्वतंत्र 

घोटू 
भाग्य ना बदल सकोगे 

दिन भर लगे काम में रहते,करते मेहनत 
किसके लिए सहेज रहे हो तुम ये दौलत 
क्योंकि तुमको कोई न बुढ़ापे में  पूछेगा 
जो भी तुमने किया ,फर्ज था ,यह कह देगा 
फिर भी ये तुम्हारी ममता या पागलपन 
सोच रहे उसके भविष्य की हो तुम हर क्षण
लाख करो कोशिश ,भाग्य न बदल  पाओगे 
उसके खतिर ,कितना ही धन छोड़ जाओगे 
निकला नालायक ,फूंकेगा,सारी  दौलत 
कर देगा  बरबाद ,तुम्हारी सारी मेहनत 
उसमे कूवत होगी ,ढेर कमा वो लेगा 
ढंग से अपना ,घर संसार ,जमा वो लेगा 
इसीलिये तुम चाहे जी भर उसे प्यार दो 
देना है ,तो उसको अच्छे संस्कार  दो 
अगर बनाना है तो लायक उसे बनाओ 
बुद्धिमान और सबका नायक उसे बनाओ 

मदन मोहन बाहेती'घोटू;' 
मोह माया को कब त्यागोगे 

इस सांसारिक सुख के पीछे ,तुम कब तक,कितना भागोगे 
दुनियादारी में उलझे हो , मोह  माया  को  कब  त्यागोगे 

झूंठे है सब रिश्ते नाते ,ये है तेरा  ,ये है मेरा 
तुम तो हो बस एक मुसाफिर ,दुनिया चार दिनों का डेरा 
पता नहीं कब आये बुलावा ,सोये हो तुम,कब जागोगे 
इस सांसारिक सुख के पीछे,तुम कब तक ,कितना भागोगे
 
धरी यहीं पर रह जायेगी ,ये तुम्हारी दौलत सारी 
साथ न जाती कुछ भी चीजें,जो तुमको लगती है प्यारी 
कुछ घंटे भी नहीं रखेंगे,जिस दिन तुम काया त्यागोगे 
इस सांसारिक सुख के पीछे,तुम कब तक,कितना भागोगे
 
सबके सब है सुख के साथी,नहीं किसी में सच्ची निष्ठां 
खाये सब पकवान रसीले,अगले दिन बन जाते विष्ठा 
जरूरत पर सब मुंह फेरेंगे,अगर किसी से कुछ मांगोगे 
इस सांसारिक सुख के पीछे,तुम  कब तक ,कितना भागोगे 

मदन मोहन बहती'घोटू'

सोमवार, 14 अगस्त 2017

जल से 

ए जल ,
चाहे तू पहाड़ों पर 
उछल उछल कर चल 
या झरने सा झर 
या नदिया बन  कर
कर तू  कल कल 
या कुवे में रह दुबक कर 
या फिर तू सरोवर 
की चार दीवारी में रह बंध कर 
या बर्फ बन जा जम कर 
या उड़ जा वाष्प बन  कर 
या फिर बन कर  बादल 
तू कितने ही रूप बदल 
तेरी अंतिम नियति है पर  
खारा समंदर 

मदन मोहन बाहेती'घोटू '
ये बूढ़े बड़े काँइयाँ होते है 

अरे ये तो सबके आनेवाले जीवन की परछाइयां होते है 
जाने क्यों लोग कहते है कि ये बुड्ढे बड़े काँइयाँ  होते है 

जवानी की  कटती हुई पतंग को ,उछल उछल  कर 
ये कोशिश करते  है ,और रखते है पकड़ पकड़ कर 
और उसे फिर से उड़ाने का ,करते रहते है प्रयास 
अपनी ढलती हुई उम्र में भी,मन में लेकर के ये आस 
ऊपरवाले की कृपा से ,शायद किस्मत मेहरबान हो जाए 
या उनकी डोर किसी नई नवेली पतंग से उलझ जाए 
क्योकि पुराने पतंगबाज है ,पेंच लड़ाने  में  माहिर है 
लाख कंट्रोल  करें,पर मचलता ही रहता उनका दिल है 
इसलिए कोशिश कर के ,बहती गंगा में हाथ धोते है 
जाने क्यों लोग कहते है कि ये बुड्ढे बड़े  काँइयाँ होते है 

भले ही धुंधलाई सी नज़रों से ,साफ़ नज़र नहीं आता है 
सांस फूल जाती है ,ठीक से चला  भी नहीं जाता  है 
भले ही निचुड़े हुए कपड़ों की तरह शरीर पर सल हो 
चेहरे पर बुढ़ापा ,स्पष्ट नज़र आता हो ,लगते दुर्बल हो 
मगर सजधज कर ,आती जाती महिलाओं को ताड़ते है
कभी तिरछी नज़र से देखते ,या कभी  आँखे फाड़ते है 
बस कुछ ही समझदार है जो कि अपनी उमर विचारते है 
और अपने जैसी ही किसी बुढ़िया पर ,लाइन  मारते है 
वरना बाकी सब तो बस जवान हुस्न के सपने संजोते है 
जाने क्यों लोग कहते है कि ये बुड्ढे बड़े काँइयाँ होते है 

हर  बुजुर्ग का अलग अलग ही ,अपना  हाल होता है 
कोई मालामाल होता है तो कोई खस्ताहाल  होता है 
कोई थका तो नहीं है पर फिर भी  रिटायर हो गया है
कोई झुकी हुई  डाल का ,पका हुआ फल हो गया है 
किसी के बच्चे उसे छोड़ कर ,हो गए विदेश वासी है 
इसलिए उसके जीवन में तन्हाई और छाई उदासी है 
फिर भी परिस्तिथियों से समझौता कर के ये जीते है 
बाहर से मुस्कान ओढे रहते  है पर अंदर से  रीते है 
ये अकेलेपन के सताये हुए है,और तन्हाईयाँ ढोते है 
जाने क्यों लोग कहते है कि ये बुड्ढे बड़े काँइयाँ होते है 

ऐसे में जो मन बहलाने को जो इधर उधर ताक लेते है 
आते जाते सौंदर्य की तरफ, जो चुपके से  झांक लेते है 
तो ये कोई इनकी शरारत नहीं ,थोड़ा सा टाइमपास है 
जी को लगाने के लिए ये  बस ये ही तो हास परिहास  है 
इनकी हरकतों पर नहीं ,इनकी मनोस्तिथि पर गौर करो 
इनको संवेदना दिखलाओ,इनकी परिस्तिथि पर गौर करो 
इन  हालातों में भी ,उनके जीने के जज्बे को सलाम करो 
इन्हे इज्जत बख्शो ,इनके चरण छुवो और  प्रणाम  करो 
क्योकि आशीर्वाद देने  को ,इनके हाथ हमेशा उठे होते है 
जाने क्यों लोग कहते है कि ये बुड्ढे बड़े काँइयाँ होते है 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
       कृष्णजी का हैप्पी बर्थडे 

माखनचोर बर्थडे  तेरा  ,ख़ुशी ख़ुशी  इस तरह मनाया 
दफ्तर में ,अपने साहब पर ,मैंने  मख्खन खूब  लगाया 
बढ़ती हुई उमर में अपनी ,रास रचाना ,रास न आये 
बालकृष्ण  के जन्मदिवस पर ,उजले बाल, कृष्ण करवाये  
रख कर, दिन भर व्रत ,तुम्हारे जन्मदिवस की ख़ुशी मनाई 
मुझे  रिटर्न गिफ्ट में अब तुम  ,दे दो इतना ज्ञान कन्हाई 
छोड़ी मथुरा ,गए द्वारिका ,यह तो अब बतलादो नटवर 
मज़ा समन्दर तीरे ज्यादा आया या यमुना के तट पर 
तुमने आठ आठ रानी संग , तार तम्य कैसे बिठलाया 
कैसे सबके साथ निभाया, मैं तो  एक संभाल न पाया
ओ  गीता के ज्ञानी  गायक ,कैसी थी तुम्हारी माया 
रह कर बने तटस्थ सारथी ,युद्ध  पांडवों को जितवाया  
उस बंशी में क्या जादू था,राधा मुग्ध हुई जिस धुन पर 
क्यों लड्डूगोपाल रूप में ,अब भी पूजे जाते घर घर 
लोग  आपको खुश करने को , राधे राधे क्यों  है गाये 
इतनी बात अगर समझा दो,मेरा जनम सफल हो जाये  

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

बुधवार, 9 अगस्त 2017

समृद्धि और संतोष  

आज मैं जब बह किसी बच्चे को ,
मोबाईल पर देर तक 
अपने किसी दोस्त से ,
करते हुए देखता हूँ गपशप 
मुझे अपने बचपन के ,
दिनों  के वो छोटे छोटे डब्बे है याद आते 
जिनमे छेद  कर के,
एक मोटे  से धागे से बाँध कर ,
हम टेलीफोन थे बनाते 
और अपने दोस्तों से 
बड़ी शान से थे बतियाते 
वो अस्पष्ट से सुनाई देते हुए शब्द,
और वो फुसफुसाते हुए होठ ,
हमे कर देते थे निहाल जितना 
आज का आई फोन भी,
 सुख नहीं दे पाता उतना 
एक छोटी सी दूरबीन,
 जिसके एक सिरे पर ,
फिल्म की कटिंग की छोटी छोटी तस्वीर 
जब दुसरे सिरे पर लगे लेंस से ,
बड़ी बड़ी नज़र आती थी 
हमारी बांछें खिल जाती थी 
या फिर हाट,बाज़ार,मेले का वो बाइस्कोप 
जब ताजमहल से लेकर ,
नहाती मोटी  धोबन के दर्शन था कराता  
हमे कितना मज़ा था आता 
जो सुख आज टीवी या पीवीआर,
 के सिनेमा घरों में भी नहीं मिल पाता 
बड़े बड़े दस मंजिली स्टार क्रूज़ में बैठ कर 
या गोवा या पट्टेया के स्पीड बोट  में सैर कर 
आज हम वो आनंद नहीं महसूस कर पाते 
जो बरसात में हमें मिलता था ,
जब हम घर के आगे की बहती नाली में,
कागज की नाव थे तैराते 
दूर आसमान में उड़ते हुए हवाईजहाजों को ,
देख कर ,उनके साथ साथ की दौड़ 
बिजनेस क्लास में हवाई सफर के ,
आनंद  को देती है पीछे छोड़ 
कहाँ तब का गर्मी की रातों में ,
अपने परिवार के साथ ,खुली छतों पर ,
तारे गिनते हुए ,ठंडी ठंडी हवा में सोना 
कहाँ  अब का ,मन बहलाने के लिए ,
गर्मी में किसी हिलस्टेशन पर ,
पांच सितारा होटल के ए सी रूम का 
ये गुदगुदा बिछौना 
दोनों में है कितना अंतर 
कौन था ज्यादा सुखकर 
पहले हम हर छोटी छोटी सुविधा में ,
खुशियां ढूंढते थे ,और संतोष से जीते थे 
मिट्टी की मटकी का ठंडा पानी खुश हो पीते थे 
और जिंदगी में आज ,
इतनी सुख और सुविधाएँ उपलब्ध है ,
पर मन में संतोष नहीं है 
ये जमाने की रफ़्तार है ,
पर क्या इसमें हमारा दोष नहीं है? 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
जिंदगी और मिठाइयां 

हमारी जिंदगी में  ,
मिठाइयों का रोल है कितना अहम 
कि अपनी कोई भी ख़ुशी का प्रदर्शन 
मिठाई बाँट कर ही करते है हम 
जन्मदिन हो या विवाह हो 
या पूरी हुई ,संतान पाने की चाह हो 
आपने नया घर बनाया हो 
या बच्चे का अच्छा रिजल्ट आया हो 
सगाई हो या रोका हो 
कोई भी ख़ुशी का मौक़ा हो 
त्योंहार हो या कोई शुभप्रसंग 
अपनी प्रसन्नता प्रकट करने का ,
सबसे अच्छा ढंग 
यह कि सब मिलने जुलने वालों का ,
मुंह मीठा करवाया जाता है 
मिठाइयों का खुशीयों  से ,
चोली और दामन का नाता है  
अरे और तो और ,
भगवान से जब लेना होता है आशीर्वाद 
तो उन्हें भी चढ़ाया जाता है ,
मिठाइयों का ही परशाद 
गणेश जी को मोदक और ,
हनुमानजी को बेसन के लड्डू भाते है 
और कृष्ण भगवान को,
छप्पन भोग चढ़ाते है  
पर आजकल हम,
 मोटा न होने के चक्कर में 
या फिर डाइबिटीज के डर में 
जब परहेज से रहते है,
मिठाइयां नहीं खाते है 
हम दुनिया की कितनी अच्छी चीजों के ,
स्वाद से वंचित रह जाते है 
गरम गरम रस टपकाती जलेबियाँ 
जो पहली नज़र में ही चुरा लेती है जिया 
मुंह में पानी आ जाता है जिनका नाम सुन 
रसगुल्ले या गुलाबजामुन 
दूर से अपनी और खींचता है जिनका जलवा 
मूंग की दाल का या गाजर का हलवा 
देखते हम जिन पर हो जाते है लट्टू 
बूंदी के प्यारे प्यारे गोलमोल लड्डू 
क़त्ल करता हुआ ,चांदी की वर्क चढ़ी ,
काजू की कतलियों का यौवन 
देख कर नहीं डोलेगा किसका मन 
और वो आपके सामने अंगड़ाइयां भरती 
रस भरी प्यारी सी इमरती 
या  वो मन मोहते हुए रबड़ी के लच्छे 
देख कर मुंह में पानी भरते अच्छे अच्छे 
लवंगलता और बालूशाही की मिठास 
जो आपके लिए बनी है ख़ास 
 ये इतनी सारी मिठाइयां ,
आपको दे रही हो निमंत्रण 
और ललचाई नज़रों से ,
आप खुद पर कर रहे है नियंत्रण 
क्यों आप इन सबका मोह त्याग कर, बेकार 
अपनी जुबान पर करते है अत्याचार 
क्योंकि यदि आप अपनी जिव्हा को तरसाएगे 
तो बड़ा दुःख पाएंगे 
अरे अगर कुछ केलोरियाँ ,
ज्यादा भी खा ली जाएंगी 
दो चार किलोमीटर घूमने में जल जाएंगी 
पर बिना खाये जो आपका मन जलेगा 
आपको बहुत खलेगा 
ये दो इंच की लपलपाती जिव्हा 
जब तक तृप्त रहेगी 
तब तक मस्त रहेगी 
अगर मीठा खायेगी 
तो मीठा बतियायेगी 
और अगर तरसेगी 
तो कहर बन के बरसेगी 
और  अगर ये गलती से मचल गयी 
बगावत करके फिसल गयी 
तो फिर ये बड़ा सताएगी 
मुंह से निकली बात वापस  न आएगी 
इसलिए इस रसना को। 
रसास्वादन करने दो 
इसे तृप्त रखो ,इसमें मिठास भरने दो 
मीठा मीठा बोल कर सबका मन लुभावो 
जी भर के मिठाइयां खाओ ,
और सबको खिलाओ 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

शनिवार, 5 अगस्त 2017

चकमक या बुझता अंगारा 

जवानी में हमारे जिस्म,
चकमक पत्थर की तरह होते है ,
जिनके आपस में टकराने से ,
चिंगारियाँ  निकलती है 
और आग जलती है 
लेकिन बुढ़ापे में ,हो जाते है 
उस बुझते हुए कोयले की तरह 
जिनके ऊपर चढ़ी रहती है,
राख की सतह 
जो कभी कभी हवा के झोंके के आने पर 
थोड़ी सी उड़ जाती है 
और तब बुझते हुए अंगारों की ,
थोड़ी सी दहक नज़र आती है 
जो आज भी ,
अपनी तपिश का दम भरती  है 
अरे गुलाब की सूखी पखुड़ियों में भी ,
थोड़ी खुशबू हुआ करती है 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'


ये दिल कितना पगला होता 

बीती बातें भुला न पाता ,लक्ष्य सामने अगला होता 
ये दिल कितना पगला होता 
अपनी तीन गर्लफ्रेंडों संग ,वो मुश्किल से निभा रहा है 
लेकिन फिर भी मन ना भरता,वो चौथी को पटा रहा है  
उसे पता जब शादी होगी, बीबी नहीं भटकने  देगी 
कन्ट्रोल रख ,नहीं किसीको ,उसके पास फटकने देगी 
लेकिन फिर भी,उनके पीछे,ये दीवाना  कंगला होता 
ये दिल कितना पगला होता 
मौज मस्तियाँ ,चार दिनों की,यूं ही अचानक छूट जायेगी 
परिवार का भार पड़ेगा  ,यारी सारी ,टूट   जायेगी 
वो अपने घर,तुम अपने घर,देख नहीं पहचानो तक भी 
पत्नीजी के अनुशासन में ,नहीं सकोगे ,उसको तक भी 
इधर उधर की सोच बावला ,क्यों फिर यूं ही गंदला होता 
ये दिल कितना पगला होता 
ये तो लालच का मारा है,माँगा करता ,मोर हमेशा 
साथ एक के रहते रहते ,हो जाता है ,बोअर हमेशा 
दिखता कितना ही शरीफ हो,मन में रहता चोर हमेशा 
कितना ही शाकाहारी हो ,रहता आदमखोर  हमेशा 
और ये चक्कर नहीं छूटता ,चाहे सर है टकला होता 
ये दिल कितना पगला होता 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
माँ के हाथ का खाना 

हलवा ,पूरी ,आलू ,होते ,स्वाद बहुत भंडारे के 
तृप्ति मिलती ,जब छकते है लंगर हम गुरद्वारे के 
माँ के हाथों बनी ,दाल और रोटी की लज्जत आगे,
फीके लगते ,सारे व्यंजन,होटल पांच  सितारे  के 

घोटू 

बुधवार, 2 अगस्त 2017

दिल दरिया होता 

एक पल प्यार का जो, उनके संग जिया होता 
तड़फते दिल को सुकूं ,मिला  शर्तियां  होता 
डाइबिटीज का भी खतरा हम उठा लेते ,
मीठी बातों से उनने जीत दिल लिया होता 
चाह  थी डाले गले में हम ,सूत्र मंगल का ,
सूत्र राखी का उनने बाँध ना दिया  होता 
दिल में बसने की उनने राह चुनी लम्बी सी,
जल्दी आ जाते अगर शॉर्टकट  लिया होता 
दिल  अगर तोड़ना था ,तोड़ते वो धीरे से,
टुकड़े टुकड़े  न उसे इस तरह किया होता 
सुना तो है बहुत,देखा न अब तलक 'घोटू'
होता छोटा सा ,लोग कहते ,दिल दरिया होता 

मदनमोहन बाहेती'घोटू'
आँखे जाती पनिया है 

दिखाती रंग अजब ,कैसे कैसे दुनिया है 
मुफ्त बदनाम हुआ करती यूं ही मुनिया है 
छुआ न जिंदगी में जिसने निरामिष भोजन ,
ऐसे बन्दे को भी हो जाता  चिकनगुनिया है 
मन्नते पूरी करता ,देख  कर चढ़ावा   है ,
आजकल हो रहा,भगवान तू भी बनिया है 
सरे बाज़ार ,उठा कर के लूट ली जाती ,
बड़ा दुःख देने लगी ,आजकल नथुनिया है 
जहाँ पर महकते ,गुलाब,जूही ,चंपा थे,
वहां पर आजकल उग आयी नागफनियाँ है 
आसमाँ पर चढ़े है भाव अब टमाटर के ,
कभी मुश्किल से मिलता प्याज,लहसुन,धनिया है 
दे दिए जख्म इतने 'घोटू'इस जमाने ने ,
जरा सी बात पर अब आँखें जाती पनिया है 

मदनमोहन बाहेती'घोटू'
आओ,कुछ इंसानियत दिखाए 

खुदा ने जब कायनात को बनाया 
तो उसे कुदरत के करिश्मो से सजाया  
नदियाएँ बहने लगी 
सबको मीठा जल देने लगी 
फिर वृक्ष बनाये 
उनमे मीठे मीठे फल लगाए 
हवाएं बहने लगी 
सबको ठंडक देने लगी 
पहाड़ो पर हरियाली छाई 
ग्रीष्म,शीत ,बारिश और बसंत ऋतू आई 
सूरज ने प्रकाश और ऊष्मा फैलाई 
चाँद ने रात में शीतलता बरसाई 
फूल महकने लगे 
पंछी चहकने लगे 
सबने ,जितना जो दे सकता था ,
खुले हाथों दिया 
और बदले में कुछ नहीं लिया 
और फिर जब भगवान ने इंसान को बनाया 
तो उसने प्रकृति की इन सारी नियामतों का ,
भरपूर फायदा उठाया 
और बदले में क्या दिया 
पेड़ों को कटवा दिया
पहाड़ों का किया दोहन 
 बिगाड़ दिया पर्यावरण 
स्वार्थ में होकर अँधा  
नदियों का पानी किया गंदा 
एक दुसरे से लड़ने लगा  
जमीन के लिए झगड़ने लगा  
धरम के नाम पर आपस में फूट डाल  ली 
कितनी ही बुराइयां पाल ली 
अब तो इस बैरभाव की इंतहा होने लगी है 
धरती भी परेशां होने लगी है 
अब समय आगया है कि हम कुछ सोचे,विचारे 
अपने आप को सँवारे 
अपने फायदे के लिए ,
दूसरों को ना करे बर्बाद 
इसलिए आप सब से है फ़रियाद 
हम इंसान है,थोड़ी इंसानियत फैलाएं 
भाईचारे से रहे ,एक दुसरे के काम आये 
तो आओ ,ऐसा कुछ करें ,
जिससे हमारी छवि सुधरे 
चलो हम किसी रोते  को हंसाये  
किसी भूखे को पेट भर खिलाये  
किसी बिछुड़े को मिलाते है 
किसी गिरते को उठाते है  
किसी प्यासे की प्यास मिटाये 
किसी दुखी का दर्द हटाए 
किसी असहाय को सहारा दे 
किसी डूबते को किनारा दे 
किसी बुजुर्ग के दुःख काटे 
किसी बीमार को दवा बांटे 
किसी को अन्धकार से उजाले में लाये 
किसी भटके को सही राह दिखलाये 
किसी अबला की इज्जत ,लूटने न  दे 
किसी बच्चे का ख्वाब टूटने न दे  
किसी अनपढ़ को चार लफ्ज सिखला दे 
किसी अंधे को रास्ता पार करा दे 
किसी के रास्ते से बुहार दे कांटे 
जितना भी हो सके,सबमे प्यार बांटे 
करे कोशिश कि कोई लाचार न हो 
कम से कम कुछ  ऐसा करे,
जिससे इंसानियत शर्मशार न हो 
मिलजुल कर भाईचारे से रहें,आपस में न लड़े 
ऐसा कुछ न करे जिसका खामियाजा ,
हमारी आनेवाली पीढ़ी को  भुगतना पड़े  
हर तरफ चैन और अमन रहे छाया 
जिससे ऊपरवाले को भी अफ़सोस न हो ,
कि उसने इंसान को क्यों बनाया?  

मदन मोहन बाहेती'घोटू'