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मंगलवार, 6 जून 2017

पक्षपात 

'फेवरेटिस्म ' याने की पक्षपात 
युगों युगों से चाय आ रही है ये बात 
किसी अपने चहेते का ,करने को उत्थान 
किसी अन्य काबिल व्यक्ति का बलिदान 
ये सिलसिला महाभारत काल से चला आ रहा है 
अपने पट शिष्य अर्जुन को शीर्ष पर रखने के लिए ,
द्रोणाचार्यों द्वारा
 एकलव्य का अंगूठा काटा जा रहा है 
सूतपुत्र कह कर कर्ण को ,
उसके अधिकारों से वंचित  करवाना 
ये 'पॉलिटिक्स' तो है काफी पुराना 
एकलव्य 'शिड्यूल ट्राइब 'और
कर्ण 'शेड्यूल कास्ट' था 
और उन दिनों 'रेज़र्वेशन'का ' बेनिफिट 'भी,
नहीं उनके पास था 
इसलिए अच्छे खासे काबिल होने पर भी ,
ये दोनों पनप  नहीं पाए 
गुरुदक्षिणा के नाम पर ,
एकलव्य का अंगूठा कटवा दिया गया ,
और कुंती पुत्र होने पर भी 
कर्ण ,सूतपुत्र ही कहलाये 
श्री कृष्ण ने भी ,जब था महाभारत का संग्राम 
अपने फेवरिट अर्जुन की ऊँगली रखी थी थाम 
उसके रथ का सारथी  बन ,
कृष्ण अर्जुन को अपनी मन मर्जी के माफिक घुमाते थे 
और वो जब अपने भाई बंधुओं से लड़ने से हिचकता था,
उसे गीता का ज्ञान  सुनाते थे 
और फिर उसके पक्ष  को जिताने के लिए,
कृष्णजी ने क्या क्या खेल नहीं खेले 
बर्बरीक का सर कटवाया ,कितने पापड़  बेले 
अपनी सोलह कलाएं ,
अपने फेवरिट को जिताने के लिए लगा दी 
इतने लोगों का सपोर्ट होते हुए भी ,
कौरवों की पराजय करवा दी 
कभी कभी अपने एक को फेवर देने के चक्कर में ,
दूसरों का भी फायदा है हो जाता 
अगर ये पक्षपात न होता ,
तो क्या हमें गीता का ज्ञान मिल पाता 
'फेवरिटिस्म 'से तो बच नहीं पाए है भगवान्
जो श्रद्धा से उनकी भक्ति करे ,
उसे वरदान देकर होते है मेहरबान 
भले ही वरदान पाकर ,
वो उन्ही के अस्तित्व को खतरा बन जाए 
और भस्मासुर की तरह 
उन्ही के पीछे पड़  जाए 
पर जब किसी की सेवा और भक्ति ,
आपको इतना अभिभूत कर दे ,
कि आपका अहम् ,
उसे उपकृत करने को आमादा हो जाए 
तो फिर कौन किसको समझाये 
ऐसे हालत में आप अपना ही नुक्सान करते है 
अपने ही हाथ 
ऐसे में कभी कभी ,पक्षपात,
बन जाता है आत्मघात 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

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