पृष्ठ

मंगलवार, 6 जून 2017

             देश-परदेश 

वहां ये है,वहां वो है ,बहुत सुनते शोर थे ,
मन में उत्सुकता जगी तो हमने भी सोचा चलें 
हक़ीक़त में वो जगह कैसी है,कैसे लोग है,
चलो हम भी देख लें,दुनिया की सारी हलचलें 
गुजारे दो चार दिन तो शुरू में अच्छा लगा ,
मगर थोड़े दिनों में ही लगा कितना फर्क है 
देख कर भौतिक सुखों को, ऐसा लगता स्वर्ग है,
मगर जब रहने लगो तो होता बड़ा गर्क  है 
भावना से शून्य सब  और है मशीनी जिंदगी,
मुल्क ठंडा ,लोगों के दिल की भी ठंडक देख ली 
सर्दियों में बर्फ के तूफ़ान से घिरते रहे ,
जगमगाती हुई रातों की भी रौनक देख ली 
भाईचारा कम मिला और लोग प्रेक्टिकल लगे,
आत्मीयता ,अपनापन ज्यादा नज़र आया नहीं 
चार दिन में यहाँ बनती,टूटती है जोड़ियां,
सात जन्मों का यहाँ पर संग दिखलाया नहीं 
जी रहे है लोग सारे ,अपनी अपनी जिंदगी ,
ले कभी सुध दूसरों की,किसी को फुर्सत नहीं 
रोज मिल जुल  बैठना ,वो यारी और वो दोस्ती 
गुमशुदा थे ये सभी,जज्बात की कीमत नहीं 
'डीप फ्रिज'में रखा खाना ,गर्म करिये,खाइये,
सौंधी सौंधी रोटियों की ,वहाँ खुशबू ना मिली 
बहुत खुल्लापन नज़र आया वहां संबंध में ,
मिला मुश्किल से किसी में ,वहां पर रिश्ता दिली 
अगर बेशर्मी खुलापन ,प्रगति की पहचान है ,
तो यकीनन ही वहां के लोग प्रगतिशील है 
मगर मेरे देश में है लाज,पर्दा आज भी ,
होता सन्मानित यहाँ पर नारियों का शील है 
वहां पर चौड़ी है सड़कें ,पर हृदय संकीर्ण है ,
यहाँ पर पगडंडियों में भी बरसता प्यार है 
वहां पर तो अकेलापन ,आदमी को काटता ,
और यहाँ पर भाईचारा,दोस्ती,,परिवार है 
वहां भी है पेड़ पौधे ,यहाँ पर भी वे सभी,
मगर पीपल,आंवला वट वृक्ष ,पूजित है यहाँ 
वहां नदियाँ,यहाँ नदियां ,बहती है हरदम सभी,
मगर माता मान कर ,नदियाँ सभी वन्दित यहाँ 
यहाँ सब रहते है मिल कर ,प्यार है,परिवार है 
तीसरे चौथे दिवस मनता कोई त्योंहार है 
यहाँ माता पिता बोझा नहीं आशीर्वाद है ,
ये यहाँ की संस्कृति के दिए सद संस्कार है
घूम फिर कर मैंने पाया ,देश मेरा धन्य है,
यहाँ जैसा सुखी जीवन ,कहीं पर भी है नहीं 
यहाँ का ऋतुचक्र ,सर्दी गर्मी,बारिश औ बसंत,
प्रकृति की ऐसी नियामत ,नज़र ना आयी कहीं 
पूजते माँ बाप को सब,संग सब परिवार है ,
सात फेरों में है बंधन ,सात जन्मों का यहाँ 
पति की लम्बी  उमर की कामना में भूखी रह ,
वरत करवाचौथ का ,करती कोई औरत कहाँ 
खाओ पीयो ,मौज करलो ,है वहां की संस्कृति ,
अहमियत ना नाते रिश्तों की ,न अपनापन वहां 
मेरी जननी,जन्मभूमि स्वर्ग से भी श्रेष्ठ है ,
नतीजा मैंने निकाला ,घूम कर सारा जहाँ 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

कृपया अपने बहुमूल्य टिप्पणी के माध्यम से उत्साहवर्धन एवं मार्गदर्शन करें ।
"काव्य का संसार" की ओर से अग्रिम धन्यवाद ।