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बुधवार, 6 जनवरी 2016

सर्दी -गर्मी

         सर्दी -गर्मी

सर्दी क्या आई ,गर्मजोशी आपकी गयी ,
होता है मुश्किलों से ही दीदार मयस्सर
ऐसा छुपा के रखते हो तुम अपने आप को,
स्वेटर है,स्वेट शर्ट है ,और अंदर है इनर
बिस्तर पे भी पड़ता  है हमें ,तुमको ढूंढना ,
ऐसी  रजाई छाई रहती जिस्मो जिगर पर
छूना तुम्हारा जिस्म भी मुश्किल अब हो गया,
अब तो बर्फ की सिल्ली से तुम हो गए डियर
आती है याद गर्मीयो की  रातें वो प्यारी ,
खुल्ला खुल्ला सा रूप था वो ख़ास तुम्हारा
पंखे की तरह घूमता था बावरा सा  मैं ,
होता था सांस सांस में  अहसास  तुम्हारा
खुशबू से भरे तन पे रहता नाम मात्र को ,
वो हल्का,प्यारा ,मलमली  ,लिबास तुम्हारा
ऐ.सी. की ठंडक में भी बड़ी लगती  हॉट थी ,
आता है याद रह रह वो रोमांस तुम्हारा 

घोटू

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