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गुरुवार, 6 अगस्त 2015

बचपन-कल और आज

      बचपन-कल और आज

अगर मिटटी में नहीं खेले
धूल में सन कर,नहीं हुए मैले
बारिश में भीग कर नहीं नहाये
बहते पानी में उछल कर,नहीं छपछपाये
शैतानी करते हुए नहीं दौड़े
साइकिल सीखते हुए,घुटने नहीं फोड़े  
रो रो कर चिल्ला,अपनी जिद ना मनवाई
फ्रिज से चुरा कर ,मिठाई ना खायी
नानी,दादी की ,कहानियां नहीं सुनी
पेड़ों पर पत्थर फेंक,जामुने नहीं चुनी
स्कूल नहीं जाने के बहाने नहीं बनाये
दरख्तों पर चढ़,आम नहीं खाये 
अपने छोटे भाई बहनो को तंग नहीं किया
तो फिर हमने  बचपन क्या  जिया ?
कॉपी किताबों से भरा स्कूलबेग ,
कंधे पर लाद  स्कूल गए
लौट कर होमवर्क में जुट गए
अपने माँ बाप की अपेक्षाएं,
 पूरी करने की दौड़ में
सबसे अव्वल आने की होड़ में
कई बार डाट खाई
और  करते रहे बस पढाई ही पढाई
न उछलकूद ,न शैतानी,न मस्ती मनाना
 टाइमटेबल के हिसाब से पल पल बिताना
और तो और ,,छुट्टियों में भी पढाई का,
ऐसा ही सिलसिला हो गया है
आजकल बच्चों का ,
बचपन कहाँ खो गया है ?

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

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