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रविवार, 30 अगस्त 2015

नारी

                   नारी

कभी मोहिनी रूप धरे मोहित करती है ,
        कभी रिझाया करती है वो ,बन कर रम्भा
कभी परोसा करती है पकवान सुहाने ,
         अन्नपूर्णा देवी सी बन  कर  जगदम्बा
बन कर कभी बयार बसंती ,मन हर्षाती ,
        कभी आग बरसाती बन कर लू का झोंका
कभी बरसती जैसे रिमझिम रिमझिम बारिश ,
        कभी उग्र हो, रूप बनाती  ,तूफानों  का    
ममतामयी कभी माँ बन कर स्नेह लुटाती,
         कभी बहन बन ,बाँधा करती ,रक्षाबंधन
कभी बहू बन,करती सास ससुर की सेवा ,
      जिस घर जाती ,वो आँगन,बन जाता उपवन
मात पिता का ख्याल रखे बेटों से ज्यादा ,
           करती सेवा ,बेटी लगती  सबको प्यारी
नर क्या,जिसे देवता तक भी समझ न पाते,
           प्रभु की इतनी अद्भुत रचना होती नारी   

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

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