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रविवार, 30 अगस्त 2015

हाँ,मैं जोरू का गुलाम हूँ

       हाँ,मैं जोरू का गुलाम हूँ

मैं बड़े गर्व से कहता हूँ
 कि मैं जोरू का गुलाम हूँ
क्योंकि  मैं एक आदमी आम  हूँ
और हर आम आदमी ,घर चलाने के लिए ,
दिनरात खटता है,काम करता है
दफ्तर में बॉस से ,
और घर में बीबी से डरता है
और ये डरना जरूरी है
या यूं कह दो ,मजबूरी है
क्योंकि घर में अगर शांति रखनी है
प्यार की रसीली जलेबियाँ चखनी है
मनपसंद खाने से पेट भरना है
तो आवश्यक बीबी से डरना है
इससे घर में शांति व्याप्त होती है
और सारी टेंशन समाप्त होती है
पत्नी का प्यार और सहानुभूति मिलती है
एक सुखद अनुभूति मिलती है
बीबी से डरना ,समझदारी की निशानी है
क्योंकि जीवन में यूं ही सेंक्डों परेशानी है
बीबी से पंगा लेकर ,
एक परेशानी और मोल लो
याने कि घर में ही ,
कुरुक्षेत्र का एक मोर्चा खोल लो
भैया ,इससे तो अच्छा है ,
बीबीजी सी थोड़ा सा डर लें   
और जीवन को खुशियों से भर लें
कई अफसर जो दफ्तर में शेर नजर आते है
बीबी के आगे ,भीगी बिल्ली बन जाते है
कोई कितना ही फांके की वो घर का बॉस है
पर वो असल में बीबी का दास है
घर की सुख और शांति ,
बीबी के आगे पीछे डोलती है
हर घर में बीबी की तूती बोलती है
भैया ,हर घर में मिटटी के चूल्हे है ,
अपने अपने हमाम में सब नंगे है
अक्लमंद लोग ,बीबी से नहीं लेते पंगे है
इसी में समझदारी है,यही डिप्लोमेसी है
वरना हो जाती ,ऐसी की तैसी है
जो लोग पत्नी को प्रताड़ते है
अपने पैरों पर खुद कुल्हाड़ी मारते है
इसलिए मैं ये एलान करता खुले आम हूँ
मैं  अपनी बीबी के इशारों पर ,
नाचता सुबह शाम हूँ
मैं गर्व से कहता हूँ,
मैं जोरू का गुलाम हूँ

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

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