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शनिवार, 1 नवंबर 2014

मिज़ाज़ -मौसम का

             मिज़ाज़ -मौसम का

बदलने लग गया है इस तरह मिज़ाज़ मौसम का,
कभी सर्दी में गर्मी है कभी बरसात रहती है
हवा के रुख का बिलकुल भी ,नहीं अबतो पता चलता ,
कभी थमकर के रह जाती ,कभी तेजी से बहती है
बदलने लग गयी है ऐसे ही इंसान की फितरत ,
भरोसा क्या करे,किस पर ,पता ना कब दगा दे दे ,
भुला बैठा है सब रिश्ते ,पड़ा है पीछे  पैसों के ,
करोड़ों की कमाई की ,हमेशा  हाय रहती  है
कमाने की इसी धुन में ,हजारों गलतियां करता ,
भुला देता धरम ईमान और सच्चाई का रास्ता ,
पड़ा  नन्यानवे  के  फेर में रहता भटकता  है,
उसे अच्छे बुरे की भी ,नहीं पहचान  रहती   है
इमारत की अगर बुनियाद ही कमजोर हो और फिर,
मिला दो आप सीमेंट में,जरुरत से अधिक रेती ,
बिल्डिंगें इस तरह की अधिक दिन तक टिक नहीं पाती  ,
जरा सा झटका लगता तो,बड़ी जल्दी से ढहती है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

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