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शनिवार, 1 नवंबर 2014

तकिया-प्यार की दीवार

        तकिया-प्यार की दीवार

बिस्तरे पर पड़ा रहता ,यूं ही आँखें मीच मैं
नींद क्या ख़ाक आएगी,तकिया हमारे बीच में
 
नरम और चिकना ,मुलायम,सुहाना अनमोल था
बाहों में कितना दबालो ,नहीं कुछ भी बोलता
कभी था सर का सिरहाना ,देता सुख की नींद था
और विरह के पलों में जो  तुम्हारे  मानिंद  था
नियंत्रित वो आजकल, कर रहा अपना प्यार है
बीच  में  मेरे तुम्हारे ,बन  गया  दीवार  है
बीच में संयम का दरिया हम न करते पार ,पर
बदलते रहते है करवट,तुम इधर और मैं उधर
चाहता हूँ पार करना ,रोज ये दहलीज   मैं
नींद क्या ख़ाक आएगी ,तकिया हमारे बीच में
एक इसके साथ ही थे ,रात भर हम जागते
एक इसके सामने ही ,लाज थे हम त्यागते
एक ये ही साक्षी है  अपने मिलन,उन्माद का 
एक ये ही था सहारा ,सुख,शयन का,रात का
आजकल संयम शिखर सा ,बीच में है ये खड़ा
मौन मैं भी,मौन तुम भी ,मौन ये भी है पड़ा
मन बहलता आजकल बस दूर से ही देख कर
इधर मै प्यासा  तरसता ,तड़फती हो तुम उधर
देख ये बाधा मिलन की बहुत जाता खीज मै
नींद क्या खाक आएगी  ,तकिया हमारे बीच में

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

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