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मंगलवार, 16 सितंबर 2014

नज़रे इनायत

           नज़रे इनायत

तुम जो भी करो ,है मुनासिब तुम्हे ,
         हम जो भी करें,हम कसूरवार  है
है हमारी खता,सिर्फ इतनी ही बस,
         चाहते है तुम्हे ,करते हम  प्यार है
जो तुम्हारी रजा,वो हमारी रजा ,
         ना तुम्हारी,हमारा भी  इंकार है
ऐसे आशिक़ कहीं भी मिलेंगे नहीं ,
        जो कि होने को कुर्बान ,तैयार है
आप नज़रें उठा कर ,हमें देखती ,
       चाँद का हमको हो जाता ,दीदार है
होगी नज़रे इनायत कभी हम पे भी,
       आएगा वो भी दिन हमको इन्तजार है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

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