पृष्ठ

गुरुवार, 5 जून 2014

पिताजी याद आतें है

       पिताजी याद आतें है

हमारी जिंदगी में जब भी दुःख,अवसाद आते है
परेशाँ मुश्किलें करती ,पिताजी याद आते है
सिखाया जिनने चलना था,हमें पकड़ा के निज उंगली
कराया ज्ञान अक्षर का  ,पढ़ाया  लिखना अ ,आ, ई
भला क्या है,बुरा क्या है ,गलत क्या है ,सही क्या है
दिया ये ज्ञान उनने  था,बताया   कैसी दुनिया  है
कहा था ,हाथ मारोगे,  तभी तुम तैर पाओगे
हटा कर राह  के रोड़े ,राह  अपनी  बनाओगे
नज़र उनपे ही जाती थी, जब आती थी कोई मुश्किल
उन्ही के पथप्रदर्शन से ,हमें हासिल हुई मंज़िल
जरुरत जब भी पड़ती थी,सहारा उनका मिलता था
नसीहत उनकी ही पाकर,किनारा हमको मिलता था
ढंग रहने का सादा था ,उच्चता थी विचारों में
भव्य व्यक्तित्व उनका था ,नज़र आता हजारों में
अभी भी गूंजती है खलखिलाहट और हंसी उनकी
वो ही चेहरा चमकता सा और वो सादगी उनकी
भले ही सख्त दिखते थे  हमें करने को अनुशासित
मगर हर बात में उनकी ,छुपा रहता , हमारा हित
उन्ही की ज्ञान और शिक्षा ,हमारी सच्ची दौलत है
आज हम जो भी कुछ है सब,पिताजी की बदौलत है
आज भी मुश्किलों के घने बादल ,जब भी छाते है
उन्ही की शिक्षा से हम खुद को बारिश से बचाते है
उन्ही के बीज है हम ,आज जो ,विकसे,फले,फूले
हमें धिक्कार है ,उपकार उनका ,जो कभी  भूले
वो अब भी आशीर्वादों की ,सदा सौगात लातें है
भटकते जब भी हम पथ से, पिताजी याद आते है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

कृपया अपने बहुमूल्य टिप्पणी के माध्यम से उत्साहवर्धन एवं मार्गदर्शन करें ।
"काव्य का संसार" की ओर से अग्रिम धन्यवाद ।