पृष्ठ

गुरुवार, 22 मई 2014

राज़-सुखी वैवाहिक जीवन का

           राज़-सुखी वैवाहिक जीवन का  

सुखी वैवाहिक जीवन का, हमारे राज़  है इतना  ,
                     जो भी कहती है बीबीजी ,काम हम वो ही करते है
नहीं गुलाम जोरू के ,मगर हम भक्त पत्नी के,
                      इशारा उनकी उंगली का ,और हम नाचा करते  है
भले ही हमसे दफ्तर में,डरे अफसर से चपरासी ,
                       मगर घर पर है बीबीजी ,हमारी बॉस ,डरते है
मिलाने उनके सुर में सुर ,की आदत पड़ गयी इतनी ,
                       खर्राटे जब वो भरती  है , खर्राटे हम भी भरते है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

कृपया अपने बहुमूल्य टिप्पणी के माध्यम से उत्साहवर्धन एवं मार्गदर्शन करें ।
"काव्य का संसार" की ओर से अग्रिम धन्यवाद ।