पृष्ठ

शनिवार, 5 अप्रैल 2014

हमारी बदकिस्मती

          हमारी बदकिस्मती

बताएं क्या हमारी  दास्ताँ है बड़ी दर्दीली ,
                       हमें बेदर्द किस्मत ने ,बहुत ज्यादा सताया है
चाँद  पाने की हसरत में ,बहुत तड़फे जवानी में,
                         बुढ़ापा आया तब जाकर , चाँद चंगुल में आया है
एक तो इस कदर से देर करदी ,तोड़ दिल डाला ,
                           जिसे बाहों में  आना  था ,  हमारे सर  पे छाया है
न जाने क्या क्या देखे थे,सपन लेकर जिसे हमने  ,
                              फेर कर   हाथ ही बस,मन हमारा बहल पाया है

घोटू    
 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

कृपया अपने बहुमूल्य टिप्पणी के माध्यम से उत्साहवर्धन एवं मार्गदर्शन करें ।
"काव्य का संसार" की ओर से अग्रिम धन्यवाद ।