पृष्ठ

रविवार, 16 फ़रवरी 2014

माँ और मासी

       माँ और मासी

मेरी माँ और मेरी मासी
एक की उम्र बानवे,एक की अठ्ठासी
दोनों दूर दूर ,अलग और अकेली
एक दुसरे को फोन करती है डेली
उनकी बातचीत कुछ होती है ऐसी
और तुम कैसी हो और मैं कैसी
तबियत कैसी है ,ठीक है ना हालचाल
तेरे बहू बेटे ,रखते है ना ख्याल
मोह माया के जाल में फंसी  है
सबकी चिंताएं ,मन में बसी है  
इधर उधर की बातें करने के बाद
रोज होता है उनका संवाद
क्या करें बहन,मन नहीं लगता है
बड़ी ही मुश्किल से वक़्त कटता है
दिन भर क्या करें ,बैठे ठाले
इतनी उम्र हो गयी है,अब तो राम उठाले
क्या करें,मौत ही नहीं आती,एक दिन है मरना
पल भर का भरोसा नहीं ,पर कहती है,
अच्छा कल बात करना

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

कृपया अपने बहुमूल्य टिप्पणी के माध्यम से उत्साहवर्धन एवं मार्गदर्शन करें ।
"काव्य का संसार" की ओर से अग्रिम धन्यवाद ।