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मंगलवार, 7 जनवरी 2014

इंकलाब या चुप्पी

      इंकलाब या चुप्पी

फूंक यदि मारो  नहीं  तो बाँसुरी  चुपचाप है
ढोल भी बजते नहीं,जब तक न पड़ती थाप है 
बिना रोये ,माँ भी बच्चों को न देती दूध है ,
कौन  तुम्हारी सुनेगा ,मौन यदि जो आप है
जब तलक निज पक्ष ना रक्खोगे जोर और शोर से ,
मिलने वाला आपको ,तब तक नहीं इन्साफ है
मांगना अधिकार अपना ,आपका अधिकार है ,
एक आंदोलन है ये  या समझ लो इन्कलाब है
कहते है भगवान  भी करता है उनकी ही मदद ,
करते  रहते नाम का उसके जो हरदम जाप है 
हर जगह ये फारमूला ,मगर चल सकता नहीं,
कई  जगहे है जहाँ चुप रहने भी लाभ है
'घोटू'हमने गलती से कल डाट बीबी को दिया ,
भूखे रह कर ,कर रहे ,अब तक हम पश्चाताप है

मदन मोहन बाहेती'घोटू' 



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