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मंगलवार, 20 अगस्त 2013

प्रार्थना


              प्रार्थना
हे प्रभु!मुझे रहने के लिए ,
बस इतनी जगह चाहिए ,
कि हाथ पैर  फैला सकूं
मुझे सोने के लिए,
बस इतनी जगह चाहिए ,
कि करवट बदल सकूं
इतनी खुली जगह हो ,
कि जब तक जियूं ,
खुल कर सांस ले सकूं  
इतनी कमाई हो ,
कि दो वक़्त दाल रोटी खा सकूं
इतना समय दो ,
कि तेरे गुण  गा सकूं
मेरी आपसे बस इतनी सी ही विनती है
क्योंकि मुझे मालूम है ,
राख की एक ढेरी  बन,
गंगा की लहरों में विलीन होना ही,
मेरी नियती है

मदन मोहन बहेती'घोटू' 

2 टिप्‍पणियां:

  1. कितनी प्यारी रचना .... ईश्वर से की गयी एक मार्मिक प्रार्थना ..

    दिल से बधाई स्वीकार करे.

    विजय कुमार
    मेरे कहानी का ब्लॉग है : storiesbyvijay.blogspot.com

    मेरी कविताओ का ब्लॉग है : poemsofvijay.blogspot.com

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