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रविवार, 18 अगस्त 2013

आजकल थकने लगे है

          आजकल थकने लगे है

आजकल थकने लगे है
लगता है पकने लगे है
जरा सा भी चल लिए तो,
दुखने अब टखने लगे है
कृष्णपक्ष के चाँद जैसे ,
दिनोदिन   घटने लगे है
विचारों में खोये गुमसुम,
छतों को तकने लगे है 
नींद में भी जाने क्या क्या,
आजकल बकने लगे है
खोखली सी हंसी हंस कर,
गमो को ढकने लगे है
स्वाद अब तो बुढापे का ,
रोज ही चखने  लगे है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

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