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गुरुवार, 4 जुलाई 2013

सत्ता

           
             सत्ता 
सत्ता ,
वो खिला पुष्प है,
जो जब महकता है,
तो आसपास भँवरे गुंजन करते है 
 और तितलियाँ,मंडराया करती है 
पर सत्ताधारी मधुमख्खी,
उसका मधुपान कर,
सारा शहद ,अपने ही छत्ते मे भरती है
सत्ता,
वो दूध है जिसको पीने से,
आदमी मे बहुत ताक़त आ जाती है 
और जिसके पकने पर,
खोये की मिठाई बन जाती है 
और तो और,अगर दूध फट भी जाता है,
तो छेना बन,रसगुल्ले का स्वाद देता है 
जो जिंदगी भर याद रहता है 
सत्ता,
वो दावत है,
जहां जब कोई जीमने जाता है 
तो इतना खाता है 
कि उसका हाजमा बिगड़ जाता है 
और इलाज के लिए ,
वो स्वीजरलेंड या  खाड़ी देश जाता है 
सत्ता ,
वो पकवान है ,जो सबको ललचाते है 
और जिसको पकाने और खाने के लिए,
चमचे जुट जाते है 
सत्ता,
वो व्यसन है,
जिसका जब चस्का लग जाता है 
तो खाने से ही नहीं,
पाने से ही आदमी बौराता है 
सत्ता ,
वो तिलस्मी दरवाजा है,जिसमे से,
एक बार जो कोई गुजर जाता है,
सोने का हो जाता है 
सत्ता,
वो जादुई जाम है,
जिसमे भर कर सादा पानी भी पी लो,
तो एसा नशा चढ़ता है,
जो पाँच साल बाद ही उतरता है 
सत्ता ,
कब तक ,किसकी,
और कितने दिन रहेगी,
किसी को नहीं होता पता 
इसलिए सत्ता मे आते ही ,
जुट जाते है सब बनाने मे मालमत्ता 
पता नहीं,कब कट जाये पत्ता 

मदन मोहन बाहेती'घोटू' 
     


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