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रविवार, 21 अक्टूबर 2012

दिल बहलाने

मधुमक्खी हर रोज
की तरह है भिनभिनाती
फूलों पर है मडराती
एक रास्ता है बनाती
बता के है रोज जाती
मौसम बहुत है सुहाना
इसी तरह उसको है गाना
भंवरा भी है आता
थोड़ा है डराता
उस डर में भी तो
आन्नद ही है आता
चिड़िया भी कुछ
नया नहीं करती
दाना चोंच में है भरती
खाती बहुत है कम
बच्चों को है खिलाती
रोज यही करने ही
वो सुबह से शाम
आंगन में चली है आती
सबको पता है रहता
इन सब के दिल में
पल पल में जो है बहता
हजारों रोज है यहाँ आते
कुछ बातें हैं बनाते
कुछ बनी बनाई
है चिपकाते
सफेद कागज पर
बना के कुछ
आड़ी तिरछी रेखाऎं
अपने अपने दिल
के मौसम का
हाल हैं दिखाते
किसी को किसी
के अन्दर का फिर भी
पता नहीं है चलता
मधुमक्खी भंवरे
चिड़िया की तरह
कोई नहीं यहां
है निकलता
रोज हर रोज है
मौसम बदलता
कब दिखें बादल और
सूखा पड़ जाये
कब चले बयार
और तूफाँ आ जाये
किसी को भी कोई
आभास नहीं होता
चले आते हैं फिर भी
मौसम का पता
कुछ यूँ ही लगाने
अपना अपना दिल
कुछ यूँ ही बहलाने ।

7 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही बढ़िया
    विजय दशमी की हार्दिक शुभ कामनाएँ!

    जवाब देंहटाएं
  2. वाह!


    आपकी इस ख़ूबसूरत
    प्रविष्टि को कल
    दिनांक 22-10-2012 को सोमवारीय चर्चामंच-1040
    पर लिंक किया
    जा रहा है।
    सादर सूचनार्थ

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत बढ़िया प्रस्तुति |
    बधाई श्रीमान सुशील जी |

    जवाब देंहटाएं
  4. दिल बहलाने बहुत बढ़िया रचना है भाई साहब ,बधाई .




    कुछ बनी बनाई है चिपकाते (हैं चिपकाते )


    फूलों पर मंडराती

    जवाब देंहटाएं

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