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शनिवार, 29 सितंबर 2012

अनाम रिश्ते


कुछ रिश्ते
धरा पर
ऐसे भी हैं
दुष्कर होता जिनको
परिभाषित करना,
सरल नहीं जिनको
नाम दे पाना,
फिर भी वो होते
गहराइयों में दिल के,
जीवन में समाए,
भावनाओं से जुड़े,
अन्तर्मन में व्याप्त,
औरों की समझ से
बिलकुल परे,
खाश रिश्ते;
दुनिया के भीड़ से
सर्वथा अलग,
नहीं होता जिनमे
बाह्य आडंबर,
मोहताज नहीं होते
संपर्क व संवाद के,
समग्र सरस, सुखद
सानिध्य हृदय के,
हर व्यथा
हर खुशी में
उतने ही शरीक,
अदृश्य डोर के
बंधन में बंधे,
नाम की लोलुपता से
सुदूर और परे,
कशमकश से भरे
अनाम रिश्ते |

3 टिप्‍पणियां:

  1. बढिया रचना है कृपया शुद्ध रूप लिखें जो इस प्रकार हैं -जिसमें ,शरीक ,कशमकश ,आभार .

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    1. गलती की ओर ध्यान दिलाने के लिए आभार | सुधार कर लिया गया है |

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  2. शुभकामनाये |
    बढ़िया प्रस्तुति ||

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