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बुधवार, 14 मार्च 2012

फरमाईश

फरमाईश
(बजट के पहले या बाद,महंगाई कितनी भी बढे,
एक चीज जिससे हर पति को रूबरू होना पड़ता है,
वो है पत्नी जी की फरमाईशे-ये ऐसी चीज है ,जिसपर
उम्र का कोई बंधन नहीं-नीचे लिखी कविता शायद
आप में से कुछ समझदार बीबियों के पतियों को,
इस फरमाईश  की बिमारी से निजात दिलवा दे,
तो अपने इस छोटे से प्रयास को सफल मानूंगा )


फरमाइश
तुमने जब जब भी पहने
सुंदर कपडे ,सुंदर गहने
और सझधज कर तैयार हुई
तुम खिलती हुई बहार हुई
देखा करते श्रृंगार  तुम्हे
मन मचला करने प्यार तुम्हे
मैं लेकर तुमको बाँहों में
उड़ चला प्यार की राहों में
जब मन में था तूफ़ान उठा
तो तन का सब श्रंगार हटा
ना  वस्त्र रहे तन पर पहने
बिखरे सब इधर उधर गहने
फैला काजल, फैली लाली
बिखरी सब जुल्फे मतवाली
जिनने कि  मुझे लुभाया था
कुछ करने को उकसाया था
जब बात प्यार की आती है
सारी  चीजे हट जाती है
तन की नेसर्गिक सुन्दरता
पाकर ही है ये मन भरता
तो क्यों गहनों की ख्वाहिश है
और कपड़ो की फरमाइश है
मदन मोहन बाहेती 'घोटू





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