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मंगलवार, 13 मार्च 2012

राज-पत्नी के 'ना'ना'कहने का

  राज-पत्नी के 'ना'ना'कहने का
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मैंने  पत्नीजी से पूछा,एक बात मुझको बतलाना
मै तुमसे जब भी कुछ कहता,तुम बस कहती हो 'ना'ना'ना
और फिर 'ना'ना' कहते कहते,बातें सभी मान लेती हो
मेरी हर एक चाह,मांग में,तुम सहयोग पूर्ण  देती हो
अक्सर लोग कहा करते है,सबके संग एसा होता है
औरत जब भी' ना 'करती है,उसका मतलब'हाँ'होता है
पत्नीजी बोली यूं हंस कर,तुम कितने भोले हो सजना
मुझको भी अच्छा लगता है,तुम्हे रिझाना,और संवरना
तुम्हे सताना,तुम्हे मनाना,और तुम्हारे  खातिर सजना
मुझे सुहाता,मन को भाता,संग तुम्हारे,सोना,जगना
अच्छा खाना,पका खिलाना,लटके,झटके ,सब दिखलाना
मीठी मीठी बात बनाना,और दीवाना,तुम्हे बनाना
मेरी चाहत की सब चीजे,अच्छा खाना और पहनना
गाना  और बतियाना,या फिर सोने का सुन्दर सा गहना
इन सब में भी तो होती 'ना',इसीलिए मै कहती 'ना'ना'
समझदार को सिर्फ इशारा ही काफी है,समझ गये ना

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

1 टिप्पणी:

  1. धन्यवाद श्री शास्त्रीजी-आपको मेरी रचनाये अच्छी लगती है -मै आपका आभारी हूँ-

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