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गुरुवार, 2 फ़रवरी 2012

विडम्बना


एक तरफ बनाकर देवी,
पूजते हैं हम नारी को,
भक्ति भाव दर्शाते हैं,
बरबस सर नवाते हैं,
माँ शारदे के रूप में कभी
ज्ञान की देवी बताते हैं,
तो माँ दुर्गा के रूप में उसको,
शक्ति रूपा ठहराते हैं |

दूसरी तरफ वही नारी,
हमारी ही जुल्मो से त्रस्त है,
कुंठित सोच की शिकार है,
कहीं तेजाब का वार सहती है,
कही बलात्कार का दंश झेलती है,
कही दहेज के लिए जलाई जाती है,
कही शारीरिक यातनाएं भी पाती है;
तो कही जन्म पूर्व ही,
मौत के घाट उतारी जाती है |

एक तरफ तो दावा करते,
हैं सुरक्षित रखने का;
दूसरी तरफ वो नारी ही,
सबसे ज्यादा असुरक्षित है |

क्या अपने देवियों की रक्षा,
अपने बूते की बात नहीं ?
क्या समाज के दोहरी नीति की,
मानसिकता की ये बात नहीं ?

3 टिप्‍पणियां:

  1. नारी पर जहां एक ओर अत्याचार हो रहे हैं वहीँ दूसरी ओर उसने अपने आपको सक्षम बनकर अन्याय के खिलाफ आवाज़ उठा कर अपने आप को ऊँचा उठाया है..
    kalamdaan.blogspot.com

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  2. प्रदीप जी, बहुत अच्छी अभिव्यक्ति!
    बहुत गहन मुद्दा है ये, और इस तरफ सुदृढ़ कदम में आपके साथ आज के ज़माने के कई युवक और युवतियां भी शामिल हैं.
    हमारे ऊपर कि जो पीढ़ी है, उनसे बस आग्रह है कि कृपया वो ज़रा बल दें. मैंने कई बार देखा है, कि स्त्री की प्रताड़ना में अधिकांशतः किसी दूसरी स्त्री का ही हाथ होता है.
    दहेज़ जैसी कुप्रथा कितनी भी बुरी हो, सास अपने ही बेटे के नाम पे बहू को प्रताड़ित करती है! Ek hi vvinti hai: Please stop Dahej, no matter how good or qualified your son is!! And youth, sharam karo, vivah ko khareed farokht ka dhandha banane par!!

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  3. हकीकत बयान करती हुई रचना....सराहनीय.....
    कृपया इसे भी पढ़े
    नेता,कुत्ता और वेश्या

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