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शनिवार, 4 फ़रवरी 2012

विरासतों

करें पुनर्निर्माण आओ ,

विरासतों के खँडहर का ,

भग्नावशेष अभी बाकी हैं ,

हमारी गौरवमयी परम्पराओं के ,

नए सिरे से सवांरें,

नव ऊर्जा का संचार भरें ,

प्राणहीन होती मानवीय संवेदनाएं ,

प्रेम के बदलते हुए अर्थ ,

अर्थ के लिए प्रेम की भावना ,

घातक स्वरुप धारण करें ,

उससे पूर्व जागृत हों ,

जागृत करें समाज को ,

स्वार्थ के घने तम को मिटायें ,

मानवीयता के प्रकाश से ,

करें आलोकित धरा को ,

राम की मर्यादा कृष्ण का ज्ञान,

मिलाकर करें पुनर्निर्माण

आओ विरासतों के खँडहर का |

रचनाकार-विनोद भगत

2 टिप्‍पणियां:

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