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शनिवार, 28 जनवरी 2012

सरस्वती वंदना

बसंत पंचमी और सरस्वती पूजा दिवस पर
सभी साहित्य प्रेमियों को घोटू की शुभकामनायें
माँ सरस्वती आपके सृजन को पुष्पित और पल्लवित करे
इसी शुभकामना के साथ सरस्वती वंदना के दो छंद

सरस्वती वंदना
---------------------
वीनापाणी, तुम्हारी वीणा ,मुझको स्वर दे
नव जीवन ,उत्साह नया माँ मुझ में भर दे
पथ सुनसान ,भटकता सा राही हूँ मै,
ज्योति तुम्हारी निर्गम पथ ,ज्योतिर्मय करदे
                        २
मात,मेरी प्रेरणा बन,प्रेम दो ,नव ज्योति दो ,
मै तुम्हारा स्वर बनू,हँसता रहूँ ,गाता रहूँ
प्यार दो ,झंकार दो ,ओ देवी स्वर की सुरसरी
तान दो ,हर बार मै ,हर लय नयी ,लाता रहूँ
मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

4 टिप्‍पणियां:

  1. उम्दा प्रस्तुति…………बसंत पंचमी की हार्दिक शुभकामनाएँ

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  2. देवी देवताओं की पूजा उन लोगों का मौलिक अधिकार है जो कि उनकी पूजा में विश्वास रखते हैं। लेकिन जब इस पूजा और विश्वास को इस महान देश की ज्ञान परंपरा में देखा जाता है तो पता चलता है कि वैदिक परंपरा में मूर्ति पूजा बाद के काल में शामिल हुई।
    जो लोग ज्ञानी हैं वे जानते हैं कि अनंत ज्ञान का स्वामी ईश्वर नर और नारी नहीं है। जब इस धरती पर ज्ञान का आलोक था तब यहां मूर्ति पूजा भी नहीं थी। तत्व की बात तो यह है कि इस सृष्टि का संचालन कोई देवी देवता नहीं कर रहा है बल्कि एक सर्वशक्तिमान ईश्वर ही कर रहा है। जो लोग उसके बनाये नियमों का पालन करते हैं उन्हें वह ज्ञान देता है और जो लोग उसके नियमों की अवहेलना करते हैं, वे ज्ञान से वंचित रह जाते हैं।
    आज भारत के युवा विदेशों में जाते हैं ज्ञान पाने के लिए, शिक्षा पाने के लिए जबकि विदेशों में शारदा और सरस्वती की वंदना-पूजा-उपासना सिरे से ही नहीं होती। वे लक्ष्मी और कुबेर की पूजा भी नहीं करते लेकिन वर्ल्ड बैंक पर क़ब्ज़ा उनका ही है और भारत के लोग उनसे आर्थिक सहायता पाने की गुहार लगाते रहते हैं।
    ज्ञान, शिक्षा और धन विदेशियों को क्यों मिला और देवियों के पुजारियों से भी ज़्यादा क्यों मिला ?


    ‘तत्व ज्ञानी‘ आज भी यही बताते हैं कि सारी चीज़ों का स्वामी केवल एक परमेश्वर है और उसके गुणों को देवी और देवता बताने वाली बातें केवल कवियों की कल्पनाएं हैं. जब ईश्वर के सत्य स्वरूप को भुला दिया गया तो ईश्वर ने अरब के लोगों को अपने सत्य स्वरूप का बोध कराया. हमारी सफलता इसमें है कि हम परमेश्वर के मार्गदर्शन में चलें जो कि वास्तव में ही ज्ञान का देने वाला है। उसका परिचय वेद और क़ुरआन में इस तरह आया है-

    1. हुवल अव्वलु वल आखि़रु वज़्-ज़ाहिरु वल्-बातिनु, व हु-व बिकुल्लि शैइन अलीम.
    वही आदि है और अन्त है, और वही भीतर है और वही बाहर है, और वह हर चीज़ का ज्ञान रखता है.
    (पवित्र क़ुरआन, 57,3)

    त्वमग्ने प्रथमो अंगिरस्तमः ...
    अर्थात हे परमेश्वर ! तू सबसे पहला है और सबसे अधिक जानने वाला है.
    (ऋग्वेद, 1,31,2)

    2. ...लै-इ-स कमिस्लिहि शैउन ...
    अर्थात उसके जैसी कोई चीज़ नहीं है.
    (पवित्र क़ुरआन, 42,11)

    न तस्य प्रतिमा अस्ति ...
    उस परमेश्वर की कोई मूर्ति नहीं बन सकती.
    (यजुर्वेद, 32,3)
    Source : वेद क़ुरआन में ईश्वर का स्वरूप God in Ved & Quran

    http://vedquran.blogspot.com/2012/01/god-in-ved-quran.html

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  3. देवी देवताओं की पूजा उन लोगों का मौलिक अधिकार है जो कि उनकी पूजा में विश्वास रखते हैं। लेकिन जब इस पूजा और विश्वास को इस महान देश की ज्ञान परंपरा में देखा जाता है तो पता चलता है कि वैदिक परंपरा में मूर्ति पूजा बाद के काल में शामिल हुई।
    जो लोग ज्ञानी हैं वे जानते हैं कि अनंत ज्ञान का स्वामी ईश्वर नर और नारी नहीं है। जब इस धरती पर ज्ञान का आलोक था तब यहां मूर्ति पूजा भी नहीं थी। तत्व की बात तो यह है कि इस सृष्टि का संचालन कोई देवी देवता नहीं कर रहा है बल्कि एक सर्वशक्तिमान ईश्वर ही कर रहा है। जो लोग उसके बनाये नियमों का पालन करते हैं उन्हें वह ज्ञान देता है और जो लोग उसके नियमों की अवहेलना करते हैं, वे ज्ञान से वंचित रह जाते हैं।
    आज भारत के युवा विदेशों में जाते हैं ज्ञान पाने के लिए, शिक्षा पाने के लिए जबकि विदेशों में शारदा और सरस्वती की वंदना-पूजा-उपासना सिरे से ही नहीं होती। वे लक्ष्मी और कुबेर की पूजा भी नहीं करते लेकिन वर्ल्ड बैंक पर क़ब्ज़ा उनका ही है और भारत के लोग उनसे आर्थिक सहायता पाने की गुहार लगाते रहते हैं।
    ज्ञान, शिक्षा और धन विदेशियों को क्यों मिला और देवियों के पुजारियों से भी ज़्यादा क्यों मिला ?


    ‘तत्व ज्ञानी‘ आज भी यही बताते हैं कि सारी चीज़ों का स्वामी केवल एक परमेश्वर है और उसके गुणों को देवी और देवता बताने वाली बातें केवल कवियों की कल्पनाएं हैं. जब ईश्वर के सत्य स्वरूप को भुला दिया गया तो ईश्वर ने अरब के लोगों को अपने सत्य स्वरूप का बोध कराया. हमारी सफलता इसमें है कि हम परमेश्वर के मार्गदर्शन में चलें जो कि वास्तव में ही ज्ञान का देने वाला है। उसका परिचय वेद और क़ुरआन में इस तरह आया है-

    1. हुवल अव्वलु वल आखि़रु वज़्-ज़ाहिरु वल्-बातिनु, व हु-व बिकुल्लि शैइन अलीम.
    वही आदि है और अन्त है, और वही भीतर है और वही बाहर है, और वह हर चीज़ का ज्ञान रखता है.
    (पवित्र क़ुरआन, 57,3)

    त्वमग्ने प्रथमो अंगिरस्तमः ...
    अर्थात हे परमेश्वर ! तू सबसे पहला है और सबसे अधिक जानने वाला है.
    (ऋग्वेद, 1,31,2)

    2. ...लै-इ-स कमिस्लिहि शैउन ...
    अर्थात उसके जैसी कोई चीज़ नहीं है.
    (पवित्र क़ुरआन, 42,11)

    न तस्य प्रतिमा अस्ति ...
    उस परमेश्वर की कोई मूर्ति नहीं बन सकती.
    (यजुर्वेद, 32,3)
    Source : वेद क़ुरआन में ईश्वर का स्वरूप God in Ved & Quran

    http://vedquran.blogspot.com/2012/01/god-in-ved-quran.html

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