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शनिवार, 28 जनवरी 2012

बूढों का हो कैसा बसंत?

बूढों का हो कैसा बसंत?
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पीला रंग सरसों फूल गयी
मधु देना अब ऋतू भूल गयी
सब इच्छाएं प्रतिकूल गयी
        यौवन का जैसे हुआ अंत
        बूढों का हो कैसा बसंत
गलबाहें क्या हो,झुकी कमर
चल चितवन, धुंधली हुई नज़र
क्या रस विलास अब गयी उमर
         लग गया सभी पर प्रतिबन्ध
          बूढों का हो कैसा बसंत
था चहक रहा जो भरा नीड़
संग छोड़ गए सब,बसी पीड़
धुंधली यादें,मन है अधीर
          है सभी समस्यायें दुरंत
          बूढों का हो कैसा बसंत
मन यौवन सा मदहोश नहीं
बिजली भर दे वो जोश नहीं
संयम है पर संतोष नहीं
        मन है मलंग,तन हुआ संत
         बूढों का हो कैसा बसंत

मदन मोहन बाहेती'घोटू'



7 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत खुबसूरत कविता,
    बसन्त पञ्चमी की हार्दिक शुभकामनाएँ!
    अपने ब्लाग् को जोड़े यहां से EK BLOG SABKA
    आशा है , आपको हमारा प्रयास पसन्द आएगा!

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  2. बहुत बेहतरीन और प्रशंसनीय.......
    बसंत पचंमी की शुभकामनाएँ।

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  3. baut hi sundar rachna um sab ke sath baanti aap ne.....ek punit kaar ke liye naye blog ka nirmaan kia hai aap saadr aamntrit hai ....sadsay ban kar tatha apne vichaar rkh kar blog ki shobha bdhayen.....

    गौ वंश रक्षा मंच gauvanshrakshamanch.blogspot.com

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  4. बेहद दिलचस्प। बूढ़ों की गुदगुदी और बढ़ा दी आपने।

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