पृष्ठ

शुक्रवार, 18 नवंबर 2011

गुनगुनाती रही



मेरी खामोशियाँ  मुझे रुलाती रहीं
बिखरे हर अल्फ़ाज के हालातों 
में फंसी खुद को मनाती रही 
मैं हर वक़्त तुझे गुनगुनाती रही |

आँखों में सपने सजाती रही 
धडकनों को आस बंधाती रही 
मेरी हर धड़कन तेरे गीत गाती रही 
मैं हर वक़्त तुझे गुनगुनाती रही |

हाथ बढाया कभी तो छुड़ाया कभी 
यूँ ही तेरे ख्यालों में आती जाती रही 
याद कर हर लम्हा मुस्कुराती रही 
मैं हर वक़्त तुझे गुनगुनाती रही |

मैं खुद को न जाने क्यों सताती रही 
हर कदम पे यूँ ही खिलखिलाती रही 
खुद को कभी हंसती कभी रुलाती रही 
मैं हर वक़्त तुझे गुनगुनाती रही |
मेरी हर धड़कन तेरे गीत गाती रही |

- दीप्ति शर्मा 

2 टिप्‍पणियां:

कृपया अपने बहुमूल्य टिप्पणी के माध्यम से उत्साहवर्धन एवं मार्गदर्शन करें ।
"काव्य का संसार" की ओर से अग्रिम धन्यवाद ।