पृष्ठ

रविवार, 30 जून 2024

संबोधन 


बेटे को *बिटुवा* कहते तो अच्छा लगता है 

बेटी को *बिटिया* कहने से प्यार उमड़ता है 

यह मेरे *वो *है कहकर पत्नी शर्माती है लेकिन पति की *वो* होने से वह घबराती है 

कहो पिताजी को पापा तो लगता अपनापन 

माताजी को *मां* कहना है ममता का बंधन बड़े भाई को *भैया* कहना चाचा को *चाचू* 

और बहन को *दीदी* कहना दादा को *दादू *

यह कुछ संबोधन है जो परिवार बनाते हैं और आपके रिश्तों में अपनापन लाते हैं सदा पिता को *आप* लगा संबोधित करते हैं 

पर मां को* तू *,ईश्वर को भी* तू* ही कहते है

बूढ़े बाबा खुश होते *अंकलजी *कहने पर 

हो जाती नाराज पड़ोसन *आंटी जी* कहने पर 

*सुनते हो जी *का संबोधन पति का होताअक्सर 

 किंतु पुकारा जाता है अब नाम एक दूजे का लेकर 

संबोधन में आदर देने नाम आगे *जी* *साहब *लगाते 

पत्नी के भ्राता साला ना वह है *साले साहब* कहाते 

नाम तुम्हारा ही लेकर हरदम जाता तुम्हें पुकारा 

नाम ही है पहचान तुम्हारी नाम बिन  ना अस्तित्व तुम्हारा 


मदन मोहन बाहेती घोटू

बॉयफ्रेंड गर्लफ्रेंड 


बॉयफ्रेंड जब बन जाता पति 

गर्लफ्रेंड बन जाती श्रीमती 


फंस कर चक्कर में गृहस्थी के 

सब रोमांस फुर्र हो जाता 

इश्क मोहब्बत इलू वाला 

सपना चूर-चूर हो जाता 

ना तो होता पहले जैसा 

मिलना जुलना गिफ्टें लाना 

घर में रोज पकाओ खाना 

बंद हुआ होटल में जाना 

रोज-रोज की तू तू मैं मैं 

से अक्सर ही बात बिगड़ती

 बाय फ्रेंड जब बन जाता पति 


गर्लफ्रेंड जब बनती पत्नी 

एक पराई बनती अपनी 


सजा धजा सा मेकअप वाला 

 रूप नज़र अब ना आता है 

ना रहते हो नाज़ और नखरे 

असली चेहरा दिख जाता है 

मिलन औपचारिक ना रहता है 

उसमे अपनापन आ जाता 

व्यस्त काम में रहती दिनभर 

फूलों सा चेहरा मुरझाता 

पर आहार प्यार का पाकर 

बदन छरहरा बनता हथनी 

गर्लफ्रेंड जब बनती पत्नी


मदन मोहन बाहेती घोटू

नींव के पत्थर 


एक विशाल इमारत बनकर 

गौरव से तुम उठा रहे सर 

टिके हुए तुम जिसके ऊपर 

हम हैं उसी नींव के पत्थर 


हम घुट घुट कर सांस ले रहें 

नाम तुम्हारा दीवारॉ पर 

इतना सारा बोझ तुम्हारा 

उठा रहे अपने कंधों पर 


है इसमें ही हर्ष हमारा 

सदा रहे उत्कर्ष तुम्हारा 

फहराए तुम्हारा परचम  

आते वर्षों वर्ष तुम्हारा 


है कोशिश हमारी हरदम 

भूकंपों से बचे रहो तुम 

देखे तुमको लोग सराहें 

ऐसे सुन्दर सजे रहो तुम 


दिन-दिन करते रहो तरक्की 

हम तो यही चाहते हैं बस 

हैं इतनी सी पर आकांक्षा 

दे दो हमको भी थोड़ा यश


मदन मोहन बाहेती घोटू

बुढापा कैसे काटें 


बुढ़ापा सबको ही आता, किसी का जोर ना चलता 

उम्र का यह दौर ऐसा सभी के मन को है खलता 

बुढ़ापे की जटिलता में किस तरह लाएं सरलता 

जिंदगी के जंग में कैसे मिले तुमको सफलता 

चंद बातें बताता हूं ,याद तुम रखना हमेशा 

पहली यह के किसी से भी रखो ना कोई अपेक्षा 

क्योंकि अक्सर अपेक्षाएं पूर्ण होती कदाचित है 

और इस कारण तुम्हारा हृदय हो जाता व्यथित है 

दूसरा यह की स्वयं की बचत खुद के नाम रखना 

किसी पर आश्रित न होना, सदा स्वाभिमान  रखना 

अपनी सारी जमा पूंजी खर्च खुद पर करो जी भर 

हाथ  देने को उठे ,ना मांगने का आए अवसर 

जिंदगी भर बहुत मेहनत करी तुमने धन कमाया 

वह भला किस काम का जो काम तुम्हारे ही  न आया 

तीसरा, चुप रहो ,घर के काम हर में मत दखल दो 

राय दो जब कोई पूछे ,बिना मांगे मत अकल दो 

क्योंकि यह पीढ़ी नई है सोचने का ढंग नया है 

वक्त पहले सा रहा ना, बदलअब सब कुछ गया है 

स्वास्थ्य अच्छा रहेगा यदि खाओ कम और खाओ गम तुम 

हो कोई झगड़ा कलह तो हमेशा ही जाओ नम तुम 

इस तरह जो रहोगे तो तुम्हारा सम्मान होगा 

बुढ़ापे में जिंदगी जीना बड़ा आसान होगा  

खाओ पियो मन मुताबिक और जियो मन मुताबिक 

मज़ा वृद्धावस्था का , जी भर उठाओ, मन मुताबिक 

पत्नी को दो मान,जीवन की वही है सच्ची साथी 

जीवन के अंतिम समय तक साथ तुम्हारा निभाती 

अपने सब सुख दुख हमेशा संग उसके मिलकर बांटो 

जिओ चिंता मुक्त जीवन ,बुढ़ापा इस तरह काटो 


मदन मोहन बाहेती घोटू

सोमवार, 24 जून 2024

कैसी मिलेगी


जो चटपट पटाओगे तो चटपटी मिलेगी


 जो खटाखट चाहोगे तो खटपटी मिलेगी


 जरा हटके ढूंढना चाहोगे तो हठी मिलेगी 


छांटने के चक्कर में रहोगे तो छंटी मिलेगी


मिलेगी वही जो लिखी होगी नसीब में तेरे 


फेर में जिसके पड़  तुम लोगे के सात फेरे


घोटू

जय अमरनाथ 


जय जय अमरनाथ सरकार 

आपकी महिमा अपरंपार 

भगत हम आए तेरे द्वार 

हमारा भी कर दो उद्धार  


अमर गुफा में पहाड़ की

 किया आपने वास 

लगी भीड़ है भक्त की

हर लो सबके त्रास 


नमो बाबा बर्फानी 

महिमा जानी मानी 

गुफा की अमरनाथ की 

सुनो तुम आज कहानी 


करी जिद पार्वती ने 

यहां पर शंकर जी ने 

सुनाई अमर कथा थी 

हुई पावन यह गुफा थी 


रूप बर्फीला लेकर 

हमेशा आते शंकर 

श्वेत छवि सुंदर प्यारी 

कष्ट हरते त्रिपुरारी 


बर्फ रूप में पहाड़ पर 

आते हैं महादेव 

जीवन में हर भक्त के 

लाते शांति सदैव 


कृपा भोले की होती 

ज्ञान की जलती ज्योती 

लुटाते हो तुम सब पर प्यार 

जय जय अमरनाथ सरकार


मदन मोहन बाहेती घोटू

रविवार, 23 जून 2024

भुनना 


 मैंने देखा है दुनिया में ,

कि औरों की प्रगति देखकर 

मन में लगती आग ,जलन से ,

जलते भुनते लोग अधिकतर 


लेकिन ऐसे जलना भुनना,

कोई बात नहीं है अच्छी 

पर कुछ चीज़ें ऐसी होती 

जो भुनने पर लगती अच्छी 


भुनता जब मक्की का दाना 

तो वह पॉपकॉर्न बन जाता 

उसकी सख्ती मिट जाती है 

वह स्वादिष्ट नरम हो जाता 


भुन जाती है अगर मूंगफली 

वह चिनिया बादाम हो जाती 

खो देती तैलीय स्वाद है ,

वह खस्ता लजीज हो जाती 


पर जब  अन्न का दाना भुनता 

तो वह बीज नहीं रह जाता 

काम आता है एक बार ही

काम नहीं दोबारा आता 


इसीलिए अन्न के दाने से 

अगर भुने तो पछताओगे 

स्वादिष्ट बनोगे एक बार 

पर फिर न कभी उग पाओगे 


निज  ऊर्जा शक्ति खो दोगे 

यदि गलत राह को चुनते हो

तुम कभी पनप पाओगे 

यदि ज्यादा जलते भुनते हो


भुनना है भुनो रुपये से 

जो को भुन देता सिक्के चिल्लर 

लेकिन उसकी कृय शक्ति में 

आता नहीं जरा भी अंतर


मदन मोहन बाहेती घोटू

बुधवार, 19 जून 2024

कन्हैया बचपन में 


तू तो बड़ा ही था शैतान,

 कन्हैया बचपन में 

करे सबको था परेशान, 

बिरज की गलियन में 


कभी किसी की हंडिया तोड़ी ,

कभी किसी की छींका तोड़ा 

माखन खाया मुंह लिपटा कर 

गोप सखा में बांटा थोड़ा 

करती थी जब गोपी शिकायत 

छुप जाता था आंगन में

 तू तो बड़ा ही था शैतान 

कन्हैया बचपन में 


बाल सखा संग धेनु चराता 

बैठ कदंब पर मुरली बजाता 

जमुना में जब नहाती गोपिया 

उन सबके तू वस्त्र चुराता 

करता था सबको परेशान 

कन्हैया बचपन में 

तू तो बड़ा ही था शैतान

 कन्हैया बचपन में 


भोली राधा बरसाने की 

हुई दीवानी मुरली धुन की 

ऐसी जोड़ी बनी तुम्हारी 

आज पूजती दुनिया सारी 

तेरी लीला बड़ी महान,

कन्हैया बचपन में 

तू तो बड़ा ही था शैतान 

कन्हैया बचपन में


मदन मोहन बाहेती घोटू

कोरा कागज 


मैं जब जन्मा था बस एक कोरा कागज था 


पहले दौर में इस पर लिखा गया अआ इ ई 

उसके बाद आई अंग्रेजी की एबीसीडी फिर मछली जल की है रानी

और हंप्टी डंप्टी की कहानी 

फिर प्लस माइनस गुणा और भाग 

ज्ञान ,विज्ञान,साहित्य और इतिहास 

बस एक डिग्री पाना ही मेरा लक्ष्य था 

जब मैं जन्मा था बस एक कोरा कागज था 


इसके बाद जवानी का उन्माद आया 

मन में किसी के प्यार का नशा छाया 

दिल की भावनाएं उस कोरे कागज पर

उभरने लगी प्रेम पत्र बनकर 

वह भी क्या गजब की उम्र आई थी 

किसी के प्रति इतनी दीवानगी छाई थी

वह जवानी वाला दौर भी गजब था 

मैं जब जन्मा था बस एक कोरा कागज था 


फिर शादी हुई और गृहस्थी का फेरा 

घर चलाने की चिंता ने था घेरा 

नौकरी और बिजनेस में व्यस्त रहकर लिखता रहा बस हिसाब कोरे कागज पर 

धीरे-धीरे वक्त के संग संग 

काला होता गया मेरा सफ़ेद  रंग 

जैसे काले बालों का रंग सफेद झक था 

मैं जब जन्मा था बस एक कोरा कागज था 


उम्र के साथ जब बुढ़ापे ने पकड़ा 

धीरे-धीरे कई बीमारी में जकड़ा 

अंग पड़े ढीले, बिगड़ने लगी सेहत 

पहले जैसी रही ना हमारी अहमियत 

मुड़े तुड़े कागज की हालत हो गई दयनीय बस इतनी जगह खाली थी जिस पर लिखा जाना था स्वर्गीय 

नियति ने लिखा हुआ पहले ही सब था 

मैं जब जन्मा था बस एक कोरा कागज था


मदन मोहन बाहेती घोटू

पिताजी आप धन्य है 
न तुमसा कोई अन्य है 

जब से मैंने आंखें खोली 
मिला आपका प्यार 
चिपक आपके कंधे पाया 
था आनंद अपार 
कदम कदम चलना सिखलाया 
मुझको संभल संभल कर 
कभी उछाला और संभाला,
दूर किया मेरा डर 
तुमने अक्षर ज्ञान कराया, 
गिनती, लिखना ,पढ़ना 
कैसे लड़ना बाधाओं से ,
कैसे आगे बढ़ना 
मुसीबत ने जब भी घेरा ,
बने सहारा मेरा 
ज्ञान दीप बन किया उजाला, 
जब भी छाया अंधेरा
ऊंची नीची परिस्थितियों में ,
कभी नहीं घबराना 
विचलित होना नहीं ,सदा ही
 हंसना और मुस्काना 
जीवन सीधा और सरल हो ,
रहन-सहन हो सादा  
सदा सात्विक भोजन करना 
उम्र मिलेगी ज्यादा 
करना नहीं घमंड कभी भी 
गुस्सा कभी न करना 
जितना भी हो सके हमेशा
प्रभु का नाम सुमरना 
चले आपके पदचिन्हों पर
आज सुखी हम सारे
ढेरों आशीर्वाद मिले हैं 
छूकर चरण तुम्हारे

कमाया बहुत पुण्य है 
पिताजी आप धन्य है

मदन मोहन बाहेती घोटू

चोंचलो के दिन गए 


अब हमारे चोंचलों के दिन गए 


मांग को तेरी सजाने को सुहाने 

आसमान से चांद तारे तोड़ लाने 

के दीवाने हौसलों के दिन गए 

अब हमारे चोंचलो के दिन गए 


कभी तुम पर जान करने को निछावर 

हमेशा ही हम रहा करते थे तत्पर 

पंख लगा कर उड़ें,छूले आसमां को,

उड़ानों के उन पलों के दिन गए 

अब हमारे चोंचलो के दिन गए 


जवानी के दिनों की वो मधुर बातें 

याद आती, मन को समझा नहीं पाते 

उमर ने पर काट डाले हैं हमारे ,

जवानी के जलजलों के दिन गए 

अब हमारे चोंचलो के दिन गए 


अब तो यादों के सहारे जी रहे हैं 

दुखी मन हैऔर आंसू पी रहे हैं 

जैसे तैसे गुजरती हैं जिंदगानी 

मस्ती वाले उन पलों के दिन गए 

अब हमारे चोंचलो के दिन गए


मदन मोहन बाहेती घोटू

मंगलवार, 18 जून 2024

Notice: Subscription Renewal and Payment Due

Reminder: update your payment details
We're having some trouble with your current billing information.
Retry Payment
We're here to help if you need it. Visit theHelp Centerfor more info orcontact us.

शनिवार, 15 जून 2024

hiphoprap.rf.gd


--
Vous recevez ce message, car vous êtes abonné au groupe Google Groupes "Fun funn".
Pour vous désabonner de ce groupe et ne plus recevoir d'e-mails le concernant, envoyez un e-mail à l'adresse fun-funn+unsubscribe@googlegroups.com.
Cette discussion peut être lue sur le Web à l'adresse https://groups.google.com/d/msgid/fun-funn/CAHKy_HCqjn17NFpxjAxu8N%2BR3ZN4N15iumQFT2ROJu2zRzk%3DsQ%40mail.gmail.com.

बुधवार, 12 जून 2024

शबरी के राम 


बनवासी है रूप ,माथ पर तिलक लगाए हैं शबरी मैया की कुटिया में राम जी आए हैं

 बोलो राम राम राम सीता राम राम 


शबरी खुशी से हुई बावरी मन में उल्लास प्रभु दर्शन की जन्म जन्म की पूरी हो गई आस 

बड़े प्रेम से पत्तल आसन पर प्रभु को बैठाया 

गदगद होकर रामचरण में अपना शीश 

नमाया 

अश्रु जल से पांव पखारे पुष्प चढ़ाए हैं शबरी मैया की कुटिया में राम जी आए हैं

बोलो राम राम राम सीता राम राम 


बरसों से करती आई थी राम नाम की टेर प्रभु प्रसाद को लाया करती ताजेताजे बेर इतनी हुई भाव विव्हल वो राम प्रभु को देख 

चख कर मीठे बेर प्रभु को, बाकी देती फेंक 

जूंठे बेर किए शबरी के, राम ने खाए हैं शबरी मैया की कुटिया में राम जी आए है

बोलो राम राम राम सीता राम राम राम 


मदन मोहन बाहेती घोटू

झगड़ने का बहाना 


बहुत दिन हुए ,जंग ना छिड़ा 

हम मे तू तू मैं मैं का 

आओ चले ढूंढते हैं 

हम कोई बहाना लड़ने का 


मैं कुछ बोलूं,, तुम झट मानो

 तुम कुछ बोलो मैं मानू 

सदा मिलाते हो हां में हां 

किस पर भृकुटी मैं तानू 

डांट लगाओ मेहरी को तो 

काम छोड़ बैठेगी घर 

अपने अंदर दबा हुआ सब 

रौब निकालूं मैं किसी पर 

हंसकर मिले पड़ोसन,

ना दे मौका बात बिगड़ने का 

आओ चलो ढूंढते हैं हम 

कोई बहाना लड़ने का


जो भी तुम्हें पका कर देती 

खाते हो तारीफ कर कर

तेज नमक या ज्यादा मिर्ची 

कभी ना आई तुम्हें नजर 

मैं जैसा भी जो भी पहनू 

तुमको सभी सुहाता है 

ढलता यौवन चढ़ा बुढ़ापा

 तुमको ना दिखलाता है 

गलती से झट कहते सॉरी 

दोष न हम पर मढ़ने का 

आओ ढूंढे कोई बहाना 

हम आपस में लड़ने का 


कितने बरस हुए शादी को

 याद तुम्हें ना आई क्या 

मेरी मैरिज एनिवर्सरी 

तुमने कभी मनाई क्या

किया स्वयं की वर्षगांठ पर 

गोवा या कश्मीर भ्रमण 

लेकिन मेरे विवाह दिवस पर 

किया न कोई आयोजन 

अबकी बार बनेगा उत्सव 

मेरा डोली चढ़ने का 

आओ ढूंढते कोई बहाना 

हम आपस में लड़ने का


मदन मोहन बाहेती घोटू