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मेरा काव्य-पिटारा
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गुरुवार, 22 मार्च 2018
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गलतफहमी ये समझ कर तुम्हारा हसीं जिस्म है , मैं अँधेरे में सहलाता जिसको रहा तुमने ना तो हटाया मेरा हाथ ही, ना रिएक्शन दिया और न ना ही कहा ...
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आशिक़ी की शिद्दत नाम उनने अपने हाथों ,जब लिखा दीवार पर , लोग सब उस जगह का चूना कुतर कर खा गए नाम उनने ,अपना कुतरा ,जब तने पर वृक्ष के , कुछ...
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मैं गृहस्थन हो गयी हूँ अदाएं कम हो गयी है शोखियाँ भी खो गयी है सदा सजने संवरने की , अब रही फुरसत नहीं है रोजमर्रा काम इतने , ...
1 टिप्पणी:
बुधवार, 21 मार्च 2018
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वक़्त के साथ-बदलते हालात वो भी कितने प्यारे दिन थे , मधुर मिलन को आकुल व्याकुल , जब दो दिल थे प्रेमपत्र के शुरू शुरू में तुम लिखती थी ...
रविवार, 18 मार्च 2018
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नव संवत्सर नए वर्ष का करें स्वागत ,हम ,तुम ,जी भर नव संवत्सर,नव संवत्सर ,नव संवत्सर हुआ आज दुनिया का उदभव ,ख़ुशी मनाएं खे...
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