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बुधवार, 21 मार्च 2018

वक़्त के साथ-बदलते हालात 

वो भी कितने  प्यारे दिन थे ,
मधुर मिलन को आकुल व्याकुल ,
जब दो दिल थे 
प्रेमपत्र के शुरू शुरू में तुम लिखती थी 
'प्यारे प्रियतम '
और अंत में दूजे कोने पर लिखती थी 
'सिर्फ तूम्हारी '
बाकी पूरा पन्ना सारा 
होता था बस कोरा कोरा 
उस कोरे पन्ने  में तब हम ,
जो पढ़ना था,पढ़ लेते थे  
दो लफ्जों के प्रेमपत्र में ,
दिल का हाल समझ लेते थे 
उसमे हमे नज़र आती थी छवि तुम्हारी 
सुन्दर सुन्दर ,प्यारी प्यारी 
और अब ये हालात हो गए 
सब लगता है सूना सूना 
डबल बेड के एक कोने में ,
वो ही पुराने प्रेमपत्र के 
'मेरे प्रियतम 'सा मैं  सिमटा 
और दूसरे कोने में तुम 
'सिर्फ तुम्हारी ' सी लेटी हो 
बाकी कोरे कागज जैसी ,सूनी  चादर 
सलवट का इन्तजार कर रही   
दोनों प्यासे ,जगे पड़े है ,
दोनों दिल में  अगन मिलन की ,
लगी हुई है ,
किन्तु अहम ने बना रखी बीच दूरियां,
दोनों के दोनों मिलने को बेकरार है 
कौन करेगा पहल इसी का इन्तजार है 
और प्रतीक्षा करते करते ,
आँख लग गयी ,सुबह हो गयी 
देखो कितना है हममें बदलाव आ गया 
तब दो लफ्जों के कोरे से प्रेमपत्र को ,
पढ़ते पढ़ते सारी  रात गुजर जाती थी 
आज अहम के टकराने से ,
 रात यूं ही बस ढल जाती है
जैसे जैसे वक्त बदलता ,
पल पल करते यूं ही जिंदगी ,
कैसे यूं ही बदल जाती है 

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '  

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