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मेरा काव्य-पिटारा
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बुधवार, 20 सितंबर 2017
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छोड़े न मगर गुलगुले गए कुछ आयेगें और खायेगें ,कुछ आये ,आकर चले गये हम तो वो पकोड़े है हरदम, जो गर्म तेल में तले गये झूठें वादों से सबने ही ...
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सर्वपितृ अमावस -नमन पुरखों को हम अपने पुरखों को ,कोटि कोटि करें नमन , दौड़ रहा रग रग में ,अंश उनका अब भी है उनकी ही कृपा और आशीषों का फल ह...
मंगलवार, 19 सितंबर 2017
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हम साथ साथ है बहुत उछाला, इक दूजे पर हमने कीचड़ बहुत गालियां दी आपस में आगे बढ़ बढ़ जो भड़ास थी मन में ,सारी निकल गयी है ये जुबान भी अब चुप ...
सोमवार, 11 सितंबर 2017
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अकेले जिंदगी जीना किसी को क्या पता है कब , बुलावा किसका आ जाये अकेले जिंदगी जीना , चलो अब सीख हम जाये अकेला था कभी ...
1 टिप्पणी:
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उचकते है कुछ पैसे पा उचकते है कुछ कुर्सी पा उचकते है मिले जो सुंदरी बीबी , कुछ खुश होकर उचकते है कोई सुन्दर ,जवां लड़की , गुजरती जो नज़र...
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