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मेरा काव्य-पिटारा
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शनिवार, 29 जुलाई 2017
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मटर पनीर मैं ,फटे हुए दूध सा , दबाया गया ,रसविहीन , टुकड़ों में काटा गया पनीर तुम ,हरी भरी,गठीली , गोलमोल मटर के दानो सी , मटरगश्ती करती हु...
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घर या घरौंदा हमें याद आते है वो दिन जब जिंदगी के शुरुवाती सफर में रहा करते थे हम ,किराये के एक घर में तब मन में एक सपना होता था , कि कभी...
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चूना १ दीवारों पर लग कर मैं दीवारें सजाता हूँ लगता हूँ पान में तो होठों को रचाता हूँ कोशिशें करता हूँ जो उनको निखारने की, उनको ये शिकायत...
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सबकी नियति इतने अंडे देख रहे तुम,कोई कब तक मुस्काएगा नियति एक ,टूटना सबको,हर अंडा तोडा जाएगा कोई यूं ही ,चोंटें खा खा ,करके चम्मच की टूट...
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मेरी आँखें पता नहीं क्यों,बहुत ख़ुशी में ,पनिया जाती,मेरी आँखें भावों से विव्हल हो,आंसूं,,भर भर लाती,मेरी आँखें दुःख में तो सबकी ही आँखें,...
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