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शनिवार, 29 जुलाई 2017

मेरी आँखें 

पता नहीं क्यों,बहुत ख़ुशी में ,पनिया जाती,मेरी आँखें 
भावों से विव्हल हो,आंसूं,,भर भर लाती,मेरी आँखें 

दुःख में तो सबकी ही आँखें,बिसुर बिसुर  रोया करती है 
अपना कोई बिछड़ता है तो ,निज धीरज खोया करती है 
खिले कमल सी सुख में ,दुःख में ,मुरझा जाती मेरी आँखें 
पता नहीं क्यों ,बहुत ख़ुशी में ,पनिया जाती ,मेरी आँखें 

कभी चमकती है चंदा सी,और लग जाता कभी ग्रहण है 
रहती है ,खोई खोई सी,जब कोई से ,मिलता मन है 
हो आनंद विभोर ,मिलन में ,मुंद मुंद  जाती,मेरी आँखें 
पता नहीं क्यों,बहुत  ख़ुशी में ,पनिया जाती,मेरी आँखें 

जब आपस में टकराती है ,तो ये प्यार किया करती है 
छा जाता है ,रंग गुलाबी ,जब अभिसार किया करती है 
झुक जाती ,जब हाँ कहने में ,है शरमाती ,मेरी आँखें 
पता नहीं क्यों ,बहुत ख़ुशी में ,पनिया जाती,मेरी आँखें 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

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