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शनिवार, 31 दिसंबर 2016
सर्दी में दुबकी कवितायें
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छुपा चंद्रमुख ,ओढ़े कम्बल ,कंचन बदन शाल में लिपटा ना लहराते खुले केश दल ,पूरा तन आलस में सिमटा तरस गए है दृग दर्शन को ,सौष्ठव लिए हुए उस ...
डर और प्यार
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जो विकराल ,भयंकर होते ,और दरिंदगी जो करते है या फिर भूत,पिशाच,निशाचर,इन सबसे हम सब डरते है बुरे काम से डर लगता है ,पापाचार डराता हमको कभ...
बीते दिन
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बीत गए दिन गठबंधन के अब तो लाले है चुम्बन के सभी पाँचसौ और हज़ारी , नोट बन्द है ,यौवन धन के ना उबाल है ना जूनून है एकदम ठंडा पड़...
सर्दी और बर्फ़बारी
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उनने तन अपना ढका जब ,श्वेत ऊनी शाल से, लगा इस पहाड़ों पर बर्फ़बारी हो गयी बादलों ने चंद्रमा को क़ैद जैसे कर लिया , ...
पुराने नोटों की अंतर पीड़ा
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एक वो भी जमाना था,हम सभी के थे दुलारे प्यार करते थे हमें सब, चाहते बांहे पसारे झलक हल्की सी हमारी ,लुभाती सबका जिया थी छुपा दिल स...
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