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मेरा काव्य-पिटारा
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शनिवार, 31 मई 2014
रस के तीन लोभी
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रस के तीन लोभी भ्रमर गुंजन करता ,प्रेमगीत मैं गाया करता खिलते पुष्पों ,आसपास ,मंडराया करता गोपी है हर पुष्प,कृष्ण हूँ श्याम...
देखो ये कैसा जीवन है
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देखो ये कैसा जीवन है गरम तवे पर छींटा जल का जैसे उछला उछला करता फिर अस्तित्वहीन हो जाता, बस मेहमान चंद ही पल का जाने कहाँ किधर खो ...
हमारी दास्ताँ
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हमारी दास्ताँ सभी ने जब सुनायी दास्ताने अपनी अपनी तो , लगा ये दास्ताँ सबकी ,मुझी से मिलती जुलती है यूं ही बैठा रहा मै को...
शुक्रवार, 30 मई 2014
मॉडर्न बीबियाँ
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मॉडर्न बीबियाँ सुनती हैं इस कान से ,उस कान से देती निकाल , बात अपने पतियों की,भला सुनता कौन है आजकल इस बात की भी उनको है फुर्सत न...
बुधवार, 28 मई 2014
मज़ा -छतों का
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मज़ा -छतों का हमें है याद आती 'घोटू'रातें गर्मियों की वो, छतों पर लोग सोते थे,छतें गुलजार रहती थी चांदनी रात में हर छत पे जब चन्द...
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