हमारी दास्ताँ
सभी ने जब सुनायी दास्ताने अपनी अपनी तो ,
लगा ये दास्ताँ सबकी ,मुझी से मिलती जुलती है
यूं ही बैठा रहा मै कोसता तक़दीर को अपनी ,
खुदा को बददुआ देता रहा ,ये मेरी गलती है
मुकद्दर लिखने वाले ने ,खुशी गम लिख्खे है सारे ,
किसी को थोडे कम है तो किसी को थोडे ज्यादा है
किसी को बचपने में दुःख,कोई हँसता जवानी में,
और मुश्किल से कोई काटता ,अपना बुढ़ापा है
रहे हर हाल में जो खुश ,जूझ सकता हो मुसीबत से ,
नाव तूफ़ान में भी उसकी हरदम पार लगती है
सभी ने जब सुनायी दास्ताने अपनी अपनी तो,
लगा ये दास्ताँ सबकी ,मुझी से मिलती जुलती है
राह में जिंदगी की कितने ही पत्थर पड़े मिलते,
करोगे साफ़ जब रोड़े ,तभी बढ़ पाओगे आगे
उठाओगे जो पत्थर ,कोई हीरा मिल भी सकता है,
बिना कुछ भी किये क्या भाग्य कोई का कभी जागे
जो पत्थर राह की अड़चन है उनमे है बड़ी ताक़त ,
जब टकराते है आपस में ,तो चिंगारी निकलती है
सभी ने जब सुनायी दास्ताने अपनी अपनी तो,
लगा ये दास्ताँ सबकी,मुझी से मिलती जुलती है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
सभी ने जब सुनायी दास्ताने अपनी अपनी तो ,
लगा ये दास्ताँ सबकी ,मुझी से मिलती जुलती है
यूं ही बैठा रहा मै कोसता तक़दीर को अपनी ,
खुदा को बददुआ देता रहा ,ये मेरी गलती है
मुकद्दर लिखने वाले ने ,खुशी गम लिख्खे है सारे ,
किसी को थोडे कम है तो किसी को थोडे ज्यादा है
किसी को बचपने में दुःख,कोई हँसता जवानी में,
और मुश्किल से कोई काटता ,अपना बुढ़ापा है
रहे हर हाल में जो खुश ,जूझ सकता हो मुसीबत से ,
नाव तूफ़ान में भी उसकी हरदम पार लगती है
सभी ने जब सुनायी दास्ताने अपनी अपनी तो,
लगा ये दास्ताँ सबकी ,मुझी से मिलती जुलती है
राह में जिंदगी की कितने ही पत्थर पड़े मिलते,
करोगे साफ़ जब रोड़े ,तभी बढ़ पाओगे आगे
उठाओगे जो पत्थर ,कोई हीरा मिल भी सकता है,
बिना कुछ भी किये क्या भाग्य कोई का कभी जागे
जो पत्थर राह की अड़चन है उनमे है बड़ी ताक़त ,
जब टकराते है आपस में ,तो चिंगारी निकलती है
सभी ने जब सुनायी दास्ताने अपनी अपनी तो,
लगा ये दास्ताँ सबकी,मुझी से मिलती जुलती है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
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