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हरि आचार्य
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मंगलवार, 8 मई 2012
मृत्यु
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अभी हूं। पर, पलक झपकते ही हो सकता हूं ‘नहीं रहा’। और, लग सकता है पूर्णविराम। सब-कुछ रह सकता है धरा का धरा। लेकिन , अभी सोचा नहीं क्या फर्क ...
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मंगलवार, 1 मई 2012
मजदूर दिवस पर विशेष
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मजदूर नहीं, तू है कर्मयोगी कर्मपथ का है पथिक तेरी सौंधी खुशबूं हरसौ बाकी सबकुछ है क्षणिक। तेरे पसीने की इक बूंद नया भारत रच...
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